Book Title: Tulsi Prajna 1990 06
Author(s): Nathmal Tatia
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 35
________________ सबके लिए आवश्यक बताते हुए प्रतिपादन किया गया है 'जहाँ पुण्णस्स कथइ, तहा तुच्छस्स कत्थइ । जहा तुच्छस्स कत्थइ, तहा पुग्णस्स कत्यइ ।' इस दृष्टि से कहा जा सकता है कि अपरिग्रह का सिद्धांत धनी व्यक्तियों के लिए जितना हितकर होता है उतना ही गरीबों के लिए भी। क्योंकि धन दोनों के पास नहीं, एक के पास है । किन्तु मूर्छा दोनों में है । दोनों ही अभाव महसूस करते हैं। इसलिए आयारो" में कहा गया है-'जे ममाइय-मन्निं जहाति, से जहाति ममाइयं ।' जब यह भावना रहती है तब तक परिग्रह का त्याग नहीं हो सकता। अतः मूर्छा भाव छोड़ने का प्रयास जरूरी है। उपर्युक्त अध्याय में विभिन्न जैनागमों व जैनेतर साध्वियों के संदर्भ देते हुए मुख्य रूप में आचागंग में वर्णित अपरिग्रह सिद्धांत का विविध दृष्टिकोणों से वर्णन किया गया है। संदर्भ: १. प्रवचन सार, २१६ २. तत्वार्थ सूत्र, ७८ ३. आयारो, १।२।२५ ४. ठाणं, ३१२४ ५. वही, ५२१११ ६. उत्तराध्ययन, ३१, ३११४ ७. ठाणं, २१४१-५१ ८. अंगुत्तरनिकाय, ३।१५३ ६. ज्ञाताधर्मकथा, १९५८ १०. आयारो, ३।१।१३ ११. दशव०, ६३१० १२. आयारो, ३२१ १३. वही, १११० १४. आयारो भाष्य (हिन्दी अनुवाद) १५. प्रश्नव्याकरण १६. आयारो, ११२६.२६ १७. वही, १।१४० १८. अहिंसा और शांति, पृ० ५१-५२ १६. वही २०. अहिंसा के अछूते पहलू, पृ० १६ २१. गांधीवाद को विनोबा की देन २२. अहिंसा और शांति, पृ.० ६४ २३. वही, पृ० १६ २४. वही, पृ०८ २५. उत्तराध्ययन, ६।४८ २६. आयारो, ६।३४ २७. सर्वार्थसिद्धि विनिश्चय, ४।२१ २८. प्रश्नव्याकरण, पृ० ४८० २६. आयारो ३०. वहा ३१. दशबै०, ६ ३२. प्रश्नव्याकरण सूत्र १९६ ३३. वही ३४. स्थानांग ३।९५ ३५. वही, ७८३, पृ० ७३८ ३६. प्रश्नव्याकरण सूत्र ॥१८ ३७. दशव० ६१२१ ३८. आयारो ३६. वही ४०. वही २०५६ ४१. प्रश्नव्याकरण सूत्र, २२० ४२. आयारो, २१ ४३. वही, २१३ ४४. सुना है मैंने आयुष्मान, प.० ५६ ४५. आयारो, २०३६ ४६. वही, २०१७४ ४७. वही, २।१५६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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