Book Title: Tulsi Prajna 1990 06
Author(s): Nathmal Tatia
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 23
________________ भारतीय चिन्तकों में नाना मत हैं । किन्तु प्रामाण्य का निश्चय स्वतः होता है या परतः है यह विभाग ग्राह्यबस्तु की अपेक्षा से है । ज्ञान के स्वरूप को ग्रहण करने की अपेक्षा उसका प्रामाण्य निश्चय अपने आप होता है । संदर्भ : 1. Gangesh's theory of truth - Introduction, P. 2 २. भारतीय दार्शनिक समस्याएं, पृ० ७६ ३. तस्मात् बोधात्मकेनस्वतः । - श्लोकवार्तिक, २।५३ ४. यत्रार्थाविसंवादित्वमस्ति तत्र प्रामाण्यम् । तात्पर्य टीका, पू० ५४ ५. भाटट् चिन्तामणि, पू० १३ ६. वेदान्त परिभाषा, ( प्रत्यक्ष परिच्छेद) ७. अद्वैत सिद्धि, पृ० १२ ८. तंत्र रहस्य (गायकवाड़ ओरियण्टल सीरिज), पृ० ३ ६. भारतीय दार्शनिक समस्याएं, पृ०७४ १०. सन्मती प्रकरण, पृ० ६१४ ११. तत्वार्थ लोकवार्तिक, पू० १७५ १२. प्रमाण मीमांसा १३. ज्ञानबिन्दुप्रकरण १४. भारतीय दार्शनिक समस्याएं, पृ० ७१ १५. प्रमाण कर्म प्रामाण्यं परिच्छित्ति लक्षणम् । - न्यायविनिश्चयटीका, १११२८. १६. ज्ञान ग्राहकातिरिक्तानपेक्षत्वं परतस्त्वतम् । -दर्शन मीमांसा १७. प्रमाणत्वाप्रमाणत्वे स्वतः सांख्या समाश्रिता । सर्वदर्शनसंग्रह, पृ० २७६ १८. अवस्थितस्य द्रव्यस्य पूर्वधर्म निवृत्तो धर्मान्तरोत्पतिः परिणामः । - युक्तिदीपिका, ६ बृहदा० उप० भाष्य १ २ १, सांख्य कारिका १६. न्याय रत्नमाला, पृ० ३१, श्लोकवार्तिक, २०५३ २०. शास्त्र दीपिका, पृ० २१३-२१४ २१. चिन्तामणि रहस्य, पृ० ११७ २२. तर्कभाषा ( प्रामाण्यवाद ) २३. न्याय रत्नमाला, पृ० ३१ २४. आप्त मीमांसा ( तत्व दीपिका परिच्छेद), कारिका-३, पृ० ५ २५. न्याय कंदली, पृ० ६१ २६. न्याय मंजरी, पृ० १७४ २७. प्रमात्वं न स्वतो ग्राह्यं संशयानुपपतितः । -- कारिकावली - १३६ २८. प्रमाणनयतत्वालोक, १।२१ २६. प्रामाण्यं तु स्वतः सिद्धमभ्यासात् परतोऽन्यथा । -प्रमाण परीक्षा ३०. प्रमेयरत्नमाला, १०१३ ३१. न हि बौद्धरेषां चतुर्णा मे कतमोऽपि पक्षोऽभीष्टः अनियमपक्षस्येष्ट त्वात् । तत्वसंग्रह - पंजिका कारिका, ३१२३ O खण्ड १६, अंक १ (जून, ६० ) १६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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