Book Title: Tithinirnay
Author(s): Ramchandra Jha
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

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Page 4
________________ आत्म-निवेदन श्रुतिविभिन्ना स्मृतयो विभिन्ना नैको मुनिर्यस्य वचः प्रमाणम् । धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायां महाजनो येन गतः स पन्थाः ॥ (महाभारत ) तिथिनिर्णय मिथिला में अनेकों प्रकारक अछि । प्रायः सब में प्रतिपद् से पूर्णिमा तक तिथि-द्वैधक सामान्य विचार देखल जाइछ । व्रतनिर्णय, तिथिनिर्णय, दुहू भिन्न-भिन्न विषय थीक । व्रतनिर्णयक विशेष वचन पुराण में उपलब्ध होइछ आ' तदनुसारे मिथिलामही-मनीषी व्रतनिर्णय करत एलाह अछि । मिथिलाक पन्चांग (पत्रा) व्रतनिर्णायक नहि मानल जाइछ-काशी आदि प्रान्त में पंचांगकारे एकर भार नेने छथि । विना ननु-नच के जनता ओकर समादर करैछ-यतः पर्वतिथि निर्विवाद छपैछ । मिथिला में प्राचीन रूढ़िवादी विद्वानक संख्या वेसी अछि । डाट- डपटक संग-संग महाशापो देवाक अधिकारी ओ अपना के बुझैत छथि-एहि तरहक पत्र हमरा बराबरि अबैत रहैत अछि । हम चाहैत छी जे 'काशी मै० विद्वज्जन समिति" सं मिथिला-पर्वनिर्णय' नामक पुस्तक प्रकाशित हो आ' पंचांगकार ओकरे अनुशरण करथि । सम्प्रति पंचांगकार अधीर भय गेल छथि । सन् १३७९ सालक 'विद्यापति-पन्चाङ्ग देखू ! अगहनक पुच्छर में एको टा दुरागमनक दिन नहि अछि । प्रवासी असंस्कृतज्ञ मैथिल एतदर्थ हमरा अनेकों पत्र लिखि के पुछलैन्ह । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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