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संत की वक्रोक्तियां: संत की विलक्षणताएं
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हुआ मानो लक्ष्यहीन । सप्रयोजन हैं दुनिया के सब लोग, अकेला मैं दिखता हठीला और अभद्र और अकेला मैं ही हूँ भिन्न अन्यों से; क्योंकि देता हूं मूल्य उस पोषण को, जो मिलता है सीधा माता प्रकृति से वह जो गहनतम स्त्रोत जीवन का, उसको ही जीता हूं। और इसलिए भिन्न हूं।
इसको हम एक तरह से और देखें ।
'जो व्यक्ति लक्ष्य को लेकर जीएगा, भविष्य उसके लिए मूल्यवान है आगे, कल । जो व्यक्ति आधार को, स्रोत को लेकर जीएगा, उसके लिए भविष्य का कोई मूल्य नहीं है। उसके लिए जड़ें मूल्यवान हैं, स्रोत मूल्यवान है। हम ऐसा समझें कि हम ऐसे लोग हैं या हम ऐसे वृक्ष हैं जो इस आशा में जीते हैं कि फूल लगें। इस आशा में हम जड़ों की सारी चिंता ही छोड़ देते हैं। हम यह भूल ही जाते हैं कि हम सिर्फ जड़ों का फैलाब हैं। हम यह भूल ही जाते हैं कि हम जड़ें ही हैं, जो पृथ्वी के बाहर आ गई हैं। हम यह भूल ही जाते हैं कि हम जड़ें ही हैं, जिन्होंने आकाश को छूने की आकांक्षा की है। हम यह भूल ही जाते हैं कि अगर जड़ों के भीतर ही छिपा है कोई फूल तो निकल आएगा; अगर नहीं छिपा है तो निकालने का कोई उपाय नहीं है। हम ऐसे वृक्ष हैं, जो जड़ों को भूल गए हैं। अब हम सोचते हैं, फूल कैसे हो जाएं?
अगर कोई वृक्ष फूल की चिंता में पड़ जाए कि फूल कैसे हो जाए, तो एक बात पक्की है कि फूल उस वृक्ष में कभी नहीं होंगे। चिंता ही सारे रस को सोख जाएगी, जिससे फूल बनते हैं।
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aft कहानी है, और लाओत्से के वक्त की ही, कि एक सेंटीपीड, एक शतपदी जानवर, सौ पैर वाला जानवर एक जंगल से गुजर रहा है। एक खरगोश बड़ी चिंता में पड़ गया - सौ पैर कौन सा पहले रखता होगा, कौन सा बाद में? कैसे हिसाब रखता होगा कि कौन सा उठ गया, कौन सा उठाना है, कौन सा आधा है बीच में, कौन सा जमीन को छू रहा है? सौ पैर खरगोश पास गया और उसने कहा, वाचा, बड़ी चिंता होती है आपको देख कर। कैसे रखते हैं हिसाब ? क्या है गणित? पहले कौन सा पैर उठाते हैं? फिर कौन सा ? फिर कौन सा ? सौ का हिसाब, सौ की संख्या याद रखनी पड़ती होगी। शतपदी ने कहा, अजीब सवाल पूछा। मैंने कभी खयाल नहीं किया। चलता तो रहा हूं, मैंने कभी खयाल नहीं किया। अब मैं खयाल करके तुझे बताऊं।
शतपदी थोड़ी देर खड़ा रहा। उसके पैर कपे और वह वहीं गिर गया। खरगोश ने पूछा, क्या हुआ? उस शतपदी ने कहा कि नासमझ, अब यह सवाल किसी और शतपदी से मत पूछना हम चलना जानते थे, यह हमने कभी सोचा न था कि कौन सा पैर पहले, कौन सा बाद में सौ का मामला है, सब गड़बड़ हो गया। अब कोई पैर ही नहीं उठता, या कई पैर साथ उठ गए, आपस में उलझ गए। जान पर मुसीबत आ गई है। तूने जो यह सवाल उठाया, यह बहुत कठिन है। और भगवान करे कि मैं जल्दी ही तेरे सवाल को भूल जाऊं। अन्यथा चलना मुश्किल हो जाएगा। चिंता आ जाएगी चलने की जगह ।
कोई वृक्ष अगर सोचने लगे कि फूल को कैसे बनाऊं, कैसे कली बने, कितनी पंखुड़ियां रखूं, कैसा रंग हो, कैसी गंध भरू उस वृक्ष में फिर फूल नहीं लगेंगे। वृक्ष को फूल की क्या चिंता होनी है? फूल तौ छिपे हैं जड़ों में, जड़ें सम्हाल लेंगी। वृक्ष को बढ़ते जाना है, जड़ों पर सब छोड़ देना है भार, कर देना है समर्पित स्रोत पर। स्रोत में ही सब छिपा है, भविष्य भी छिपा है, कल भी छिपा है। जो होगा, वह भी छिपा है।
लाओत्से कहता है, जड़ों पर सब छोड़ दिया है मैंने। और चारों तरफ जो लोग हैं, वे सब अपना-अपना भार उठाए चल रहे हैं। वे कहते हैं, हमारी मंजिल । हमारा लक्ष्य। हमें कुछ होना है। हमें कुछ करके दिखाना है। संसार में आए हैं, तो बिना किए नहीं जाएंगे !
मां-बाप समझाते हैं बच्चों को संसार में आए हो, कुछ करके दिखाओ!