Book Title: Tao Upnishad Part 03
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 397
________________ विजयोत्सव ऐसे मना जैसे कि वह अंत्येष्टि छो प्रतिष्ठा ही नष्ट हो गई सारी। उसके बाद फिर कोई यह मान नहीं सकता कि वह स्तन सच्चा है, फिर तो वह कुछ भी लाख उपाय करे। उसका सारा का सारा इमेज खो गया। क्यों स्त्रियां उत्सुक होती होंगी? क्यों पुरुष उत्सुक है। कोई आप कारण मत खोजें बुद्धिगत। बुद्धिगत कारण नहीं है; इंप्रिंट! सिर्फ एक संस्कार है, बचपन से बच्चे के ऊपर पड़ा है। वह संस्कार की तलाश कर रहा है। मां का मतलब स्तन; वह उसकी पहली पहचान है इस जगत से। इसलिए स्तन प्रीतिकर मालूम पड़ते रहेंगे। बूढ़े आदमी को भी कठिनाई होती है। मुझसे एक बूढ़े सज्जन पूछ रहे थे कि यह क्या मामला है ? आखिर स्त्री के स्तन में अब भी इतना रस क्यों है? तो मैंने उनको कहा कि इसमें आप कुछ घबराएं न, और कसूर न समझें कुछ। और न कुछ पाप-अपराध हो रहा है। आप भी बच्चे थे, बस इसकी खबर है। और कुछ मामला नहीं है। कभी आप भी बच्चे थे, बस इसकी खबर है। इसमें आप परेशान न हों ज्यादा। सहजता से इसे स्वीकार कर लें। क्योंकि कभी आप भी स्तन से दूध लिए। लेकिन आदमी आस-पास तर्क, बुद्धि का जाल खड़ा कर लेता है। उसका नाम है रेशनलाइजेशन, तर्कीकरण। यह तर्कीकरण से, कोई आदमी रक्तपात में रस लेता हो तो वह कहेगा, विजय में बड़ा सौंदर्य है, विजय की बड़ी गरिमा है, विजय महान है, विजय बड़ी श्रेष्ठ है, और विजयी का बड़ा गौरव है। हम भी, आप भी क्यों आखिर, अगर दो आदमी लड़ते हों और एक गिर जाए जमीन पर और दूसरा छाती पर बैठ जाए, तो आप छाती पर बैठने वाले को गौरवान्वित क्यों मानते हैं? समझ के बिलकुल बाहर बात है कि इसमें क्या गौरवान्वित होने की बात है? आप छाती पर बैठ गए, वह आदमी नीचे लेट गया, इसमें गौरवान्वित होने की क्या बात है? वह जो नीचे लेट गया, वह भी पीड़ा अनुभव करता है कि मैं ना-कुछ। जो छाती पर बैठ गया, वह अनुभव करता है मैं सब कुछ। देखने वालों के मन में भी, जो जीत गया, वह गौरव पाता है। क्यों? आखिर जीतना ऐसा गौरव क्यों है? नहीं आपने सोचा होगा। आप भी जीतना चाहते हैं, दूसरे की छाती पर आप भी बैठना चाहते हैं। इसलिए जब भी कोई दूसरे की छाती पर बैठ जाता है, तब आप उसको गौरवान्वित समझते हैं। क्योंकि यही आपकी भी मनोकांक्षा है, यही आप भी चाहते हैं। और जब नीचे कोई छाती के नीचे गिर जाता है, किसी के पैरों के नीचे दब जाता है, तो आप उसको गौरवान्वित नहीं कह सकते। हां, सहानुभूति दिखा सकते हैं उसके साथ। इसलिए सहानुभूति से कोई सुखी नहीं होता, ध्यान रखना। भूल कर किसी को सहानुभूति मत बताना। क्योंकि उसका मतलब ही यह है कि आपने भी मान लिया कि गिर गए, सहानुभूति के योग्य हो गए। सहानुभूति के योग्य होने का मतलब ही यह है कि गौरव छिन गया। जीते के साथ कोई सहानुभूति नहीं दिखाता। कभी आप कहते हैं किसी से कि बड़ी सहानुभूति है आपके प्रति, क्योंकि आप जीत गए? कोई नहीं कहता। सिर्फ हारे हुए के साथ सहानुभूति। वह भी क्यों? आप जीतना चाहते हैं, इसलिए जीते को गौरवान्वित कहते हैं। और आप भी डरते हैं कि कहीं हार गए, तो कम से कम सहानुभूति तो मिलनी चाहिए। वे दोनों आपके अचेतन में दबे हुए भाव हैं। उनका फैलाव है।। अगर कोई मनुष्य सच में ही आध्यात्मिक साधना में उतरना चाहता हो तो उसे अपने हर भाव के पीछे अचेतन दशा को खोजना चाहिए। बुद्धि और तर्क से कुछ समझाने की कोशिश नहीं करना चाहिए, कि हम कुछ समझा-बुझा कर अपना जाल खड़ा कर लें और कहें कि इस वजह से। आप साधारणतः यही कहना चाहेंगे कि विजय श्रेष्ठ है, इसलिए जो जीत गया, उसका गौरव है। लेकिन क्यों है विजय श्रेष्ठ? और हार बुरी क्यों है? और वह हार गया, वह अपमानित क्यों है? इसके क्या कारण हैं भीतर? इसके कारण आपकी आकांक्षा और वासना में हैं। हारने और जीतने की बाहर जो घटना घट रही है, वह तो केवल बहाना है; आपके भीतर की वासना उस बहाने का उपयोग कर रही है। 3871

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