Book Title: Tao Upnishad Part 03
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 399
________________ विजयोत्सव ऐसे मना जैसे कि वह अंत्येष्टि को जो भयभीत कर रहा है, वह भला सोचता हो कि मैंने प्रेम पैदा कर लिया, वह दूसरे में प्रेम पैदा नहीं कर रहा है, सिर्फ घृणा पैदा कर रहा है। लेकिन तुलसीदास ठीक कहते हैं, निन्यानबे आदमियों के बाबत यही बात है कि वे भय को ही प्रेम समझते हैं। तो जितना डराते हैं, उतना सोचते हैं...। एक नेता है बड़ा। भीड़ लग जाती है, लोग जयजयकार करते हैं, फूलमालाएं पहनाते हैं। और कल वह ताकत में नहीं रहता, फिर उसका पता ही नहीं चलता, वह कब आता है, कब जाता है। फिर आपको आखिरी खबर तभी मिलेगी जब वह मरेगा, अखबार खबर छापेंगे। क्यों? अगर इतना प्रेम था, तो इतनी जल्दी खो कैसे जाता है? वह प्रेम वगैरह नहीं था, सत्ता का भय था, ताकत की पूजा है। तो खो जाती है। अगर पति बहुत धन कमाता है, तो पत्नी बहुत प्रेम करती मालूम पड़ती है। फिर धन नहीं कमाता, या गंवा बैठता है धन को, सब प्रेम समाप्त हो जाता है। वह प्रेम कहां गया? वह प्रेम कभी था नहीं, वह धन का भय था। प्रतिष्ठा, धन की शक्ति, उसका भय था। उससे सब प्रेम था। इसलिए पुरुषों ने स्त्रियों को सदा भयभीत रखा है। क्योंकि वे सोचते हैं, भयभीत स्त्री प्रेम करेगी। भयभीत स्त्री भीतर से घृणा ही करेगी; प्रेम नहीं कर सकती। लेकिन सस्ता है यह काम, दूसरे को भयभीत करना सस्ता काम है। दूसरे के मन में अपने लिए प्रेम करना बहुत कठिन काम है, अति कठिन काम है। शायद इस पृथ्वी पर इससे बड़ा कोई कठिन काम ही नहीं है। प्रेम से बड़ी कोई कला नहीं है। इसलिए सस्ता काम है कि डरा दो, तो भय पैदा हो जाए। तो पुराने धर्म भी भय पर खड़े हैं। वे कहते हैं, ईश्वर से डरो। लेकिन जो आदमी ईश्वर से डरेगा, वह ईश्वर को प्रेम कैसे करेगा? डर कहीं प्रेम पैदा करता है? तब तो दिल में तो यही रहेगा कि कोई दिन मौका मिल जाए तो ईश्वर की छाती में छुरा भोंक दें। मन में तो यही रहेगा। ऊपर से हाथ जोड़े खड़े हैं, जी-हुजूरी कर रहे हैं : कि हम पापी हैं, आप पतितपावन हो। मगर भीतर सोच रहे हैं कि कब मौका मिले कि हम सिंहासन पर बैठे और तुम वहां आगे आकर कहो कि आप पतितपावन हो, हम पापी हैं! भय तो सदा ही यह प्रतीक्षा करेगा, चाहे भयभीत आदमी को पता भी न हो। यही मैं कह रहा हूं। खुद भयभीत आदमी को पता न हो कि उसकी अचेतन आकांक्षा क्या है; लेकिन डरा हुआ आदमी अचेतन में घृणा ही करेगा और बदला लेना चाहेगा। लाओत्से कहता है कि घृणा से, हिंसा से कभी कोई शासन करने में सफल नहीं हो पाएगा। क्योंकि शासित स्वीकार ही नहीं करता आपको। उसके हृदय में आपकी विजय कभी स्थापित नहीं होती। सिर्फ एक ही उपाय है कि किसी के हृदय में विजय स्थापित हो जाए; वह उपाय प्रेम का है, हिंसा का नहीं है।। मगर उसकी बड़ी कठिन शर्त है। और वह शर्त यह है कि जब तक आप दूसरे को विजित करना चाहते हैं, तब तक आपमें प्रेम ही नहीं है। यह जरा जटिल मामला है। जब आप में प्रेम होता है, तो दूसरा हार जाता है; लेकिन जब तक आप हराना चाहते हैं, तब तक आप में प्रेम ही नहीं होता। जीत होती है दुनिया में, लेकिन उसकी ही होती है जो जीतना चाहता ही नहीं। और कई बार तो ऐसा होता है कि जो हारने को तैयार होता है, वही जीत जाता है, पहले वही जीत जाता है। जीसस ने कहा है, जो आखिरी खड़े होने को राजी हैं, वे मेरे राज्य में प्रथम खड़े हो जाएंगे। और जो हारने को राजी हैं, उनकी जीत निश्चित है। जो खोने को राजी हैं, उन्हें कोई पाने से नहीं रोक सकेगा। जो बचाना चाहेंगे, उनसे छिन जाएगा। यह ठीक कहा है, ये उलटे सूत्र बड़े ठीक हैं। लेकिन ये सूत्र प्रेम के हैं। अगर मैं आपको जीतना चाहता हूं, तो एक बात निश्चित है, मैं कभी नहीं जीत पाऊंगा। क्योंकि मेरी जीतने की आकांक्षा ही आपको मेरा दुश्मन बना रही है। 389

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