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ताओ उपनिषद भाग ३
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इसलिए लाओत्से तो कहता है कि जो परम प्रकृति है, वह प्रकाश जैसी कम और अंधेरे जैसी ज्यादा है। इस अर्थों में- शाश्वत है, अनंत है, अमृत है, निराकार और अद्वैत है। प्रकाश में भेद पैदा हो जाता है।
यहां हम इतने लोग बैठे हैं। प्रकाश है तो हम सब अलग-अलग दिखाई पड़ते हैं। अभी अंधकार हो जाए, सब भेद खो जाएंगे। सब भेद प्रकाश में दिखाई पड़ रहे हैं। अंधेरे में तो सब अभेद हो जाता है।
तो लाओत्से अंधेरे का और भी अर्थ लेता है साथ में; वह भी हमें खयाल ले लेना चाहिए। वह कहता है, यह जो ताओ है, यह अंधेरा और धुंधला है। यहां चीजें साफ नहीं हैं। यहां सीमाएं बंटी नहीं हैं। एक-दूसरे में प्रवेश कर जाती हैं। सीमाएं थिर, ठोस नहीं हैं, तरल हैं, वायवीय हैं, तरंगित हैं। कोई सीमा बंधी हुई नहीं है। एक रूप दूसरे रूप में रूपांतरित होता रहता है। यह एक अद्वैत सागर है।
'फिर भी छिपी है जीवन ऊर्जा उसी में ।'
इस परम शांत, मौन अंधकार में ही जीवन की समस्त ऊर्जा छिपी है। जीवन की सारी शक्ति, लाइफ इनर्जी, जिसे बर्गसन ने एलान वाइटल कहा है, वह इसी अंधकार की गहन पर्त में छिपी है।
इसे हम जरा दो - तीन तरफ से समझ लें। क्योंकि लाओत्से के सारे प्रतीक अत्यंत गहन हैं। कभी आपने खयाल किया कि जीवन का जब भी जन्म होता है, तो अंधकार में होता हैं! चाहे एक बीज फूटता हो जमीन के गर्भ में, और चाहे एक बच्चा निर्मित होता हो मां के गर्भ में, प्रकाश में जन्म नहीं होता; सब जन्म अंधकार में होता है। एक बीज को अगर जन्माना है— छिपा दें अंधेरे में; फूटेगा। एक बच्चे को जन्माना है - वह भी बीज का छिपाना है— छिपाएं मां के अंधकार में, मां के गर्भ में, वहां प्रकाश की किरण भी नहीं पहुंचती। वहां वह बड़ा होगा, निर्मित होगा, विकसित होगा। प्रकाश में तो वह तभी आएगा, जब जो भी आधारभूत है, वह निर्मित हो चुका।
जड़ें अंधेरे में छिपी रहती हैं। निकाल लें प्रकाश में, वृक्ष मुरझा जाएगा, मर जाएगा। जड़ों का तो काम है कि वे अंधेरे में ही छिपी रहें। क्योंकि जीवन की जो गहन ऊर्जा है, वह परम अंधकार में छिपी है।
परम अंधकार का अर्थ है परम रहस्य, एब्सोल्यूट मिस्ट्री । अंधकार बहुत रहस्यपूर्ण है। प्रकाश में तो सब रहस्य खो जाता है। जिस चीज पर प्रकाश पड़ जाता है, उसी का रहस्य खो जाता है। पूरब के लोग बहुत होशियार थे, इसलिए उन्होंने जीवन की जो-जो रसपूर्ण बातें थीं, उन पर पर्दा डाल रखा था । स्त्री सुंदर थी – उतनी सुंदर नहीं, उतनी सुंदर होती ही नहीं, जितनी सुंदर थी— पर्दे के कारण। बेपर्दा होकर पश्चिम की स्त्री कुरूप हो गई। हालांकि मजे की बात यह है कि पश्चिम में आज सुंदरतम स्त्रियां हैं, जैसी पृथ्वी पर कभी भी नहीं थीं। लेकिन फिर भी कुछ बात खो गई। रहस्य खो गया। वह जो पर्दा था, वह जो घूंघट था, वह जो कुछ छिपाता था; वह छिपा हुआ रहस्यपूर्ण हो जाता था। सब उघड़ जाए, रस खो जाता है।
विज्ञान रस का बड़ा दुश्मन है – उघाड़ने में लगा रहता है। धर्म रस का बड़ा प्रेमी है - ढांकने में लगा रहता है । इसलिए लाओत्से के अंधेरे का यह अर्थ ठीक से समझ लें ।
जीवन की जो गहनतम ऊर्जा है, वह अंधकार में छिपी है। और वहीं से आती है प्रकाश में; लेकिन जड़ें अंधकार में ही बनी रहती हैं। हम बाहर के जगत में फैलते जाते हैं, हमारी शाखाएं फैलती जाती हैं, पत्ते - फूल; लेकिन हमारी जड़ें अंधकार में बनी रहती हैं।
अंधकार लाओत्से के लिए वैसा प्रतीक नहीं है, जैसा हम सोचते हैं। आमतौर से हमारे मन में अंधेरा मौत का प्रतीक है, प्रकाश जीवन का। इसलिए जब कोई मर जाता है तो हम दुख में काले कपड़े पहन लेते हैं। लाओत्से से पूछें तो वह कहेगा, क्या पागलपन कर रहे हो! अंधेरा तो जीवन की ऊर्जा को छिपाए है; तुम काले कपड़े को, अंधेरे मृत्यु के साथ जोड़ रहे हो ?