Book Title: Tao Upnishad Part 03
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 379
________________ युद्ध अनिवार्य हो तो शांत प्रतिरोध ही बीति है मैंने उनसे पूछा, मुसलमानों से पूछा? उन्होंने कहा, उनसे क्या पूछना है! तो मैंने उनको कहा, अगर मुसलमान मेरे पास आएं, क्योंकि न मैं हिंदू हूं, न मैं मुसलमान हूं, अगर वे मेरे पास आएं और वे कहें कि काफिरों को तो नष्ट करने की आज्ञा कुरान में दी हुई है। तो मैं उनसे पूछंगा कि काफिर कौन है? अगर सिद्ध है कि हिंदू काफिर हैं, तब तो कोई मामला ही नहीं है। मगर हिंदुओं से पूछा? वे भी राजी नहीं होंगे पूछने, कि काफिरों से क्या पूछना है! हम मान कर ही बैठे हैं। तो फिर ठीक है, मुसलमान समझते हैं कि तुम गलत हो, हिंदू समझते हैं कि मुसलमान गलत हैं। कौन तय करे? । एक बात पक्की है, जो आदमी सदा देखता है कि दूसरा गलत है और मैं ठीक हूं, वह गलत होगा। यह गलत आदमी का लक्षण है असल में। सही आदमी बहुत विचार करता है, इसके पहले कि दूसरे को गलत कहे, अपने गलत होने की सारी संभावनाओं को सोच लेता है कि कहीं मैं गलत तो नहीं हूं। बुरा आदमी इस झंझट में नहीं पड़ता। वह मान कर चलता है कि दूसरा गलत है। मुसलमान गलत होते हैं, ऐसा नहीं है; मुसलमान गलत होते ही हैं, इसमें कुछ और सोच-विचार की जरूरत नहीं है। उनका मुसलमान होना उनके गलत होने के लिए काफी है। ऐसे ही हिंदू का हिंदू होना काफिर होने के लिए काफी है। फिर जब मुसलमान हिंसा करता है, तो वह नहीं मानेगा कि हिंसा हर हालत में अनिष्ट का साधन है। वह कहेगा कि हिंदू जब हिंसा करते हैं, तब अनिष्ट का साधन है। और जब हम कर रहे हैं, तो काफिर का नाश करना, यह कहीं अनिष्ट है? यह तो इष्ट है। इसलिए सभी युद्धखोर अपनी हिंसा को इष्ट मानते हैं, दूसरे की हिंसा को अनिष्ट मानते हैं। लाओत्से कहता है, सैनिक हर हालत में, हिंसा हर हालत में अनिष्ट का साधन है। कौन उपयोग करता है, इससे सवाल नहीं है; हर हालत में अनिष्ट का साधन है। अच्छा आदमी भी उपयोग करे, तो भी उससे अनिष्ट ही होता है; बुरा आदमी करे, तो भी अनिष्ट होता है। साधन ही अनिष्ट का है। तब फिर अच्छा आदमी क्या करे? हिंसा उसका शस्त्र नहीं हो सकती। सैनिक सज्जन के लिए शस्त्र नहीं हो सकते। इसलिए जब तक कोई राष्ट्र वस्तुतः समस्त सैन्य शक्ति का विसर्जन नहीं करता, तब तक सुसंस्कृत कहने का अधिकारी नहीं है। कोई राष्ट्र जब तक सैनिक को रखता है, तब तक वह सुसंस्कृत कहलाने का अधिकारी नहीं है। लेकिन कोई राष्ट्र यह हिम्मत नहीं जुटा सकता कि सैनिक को विदा कर दे। मजबूरियां हैं। क्योंकि चारों तरफ जो लोग इकट्ठे हैं, वे तत्काल दौड़ पड़ेंगे, वे तत्काल मुल्क को पी जाएंगे। यह भय है। तो सज्जन भी क्या कर सकता है? सैनिक को अपना साधन न भी माने, लेकिन अगर असज्जन उस पर हमला करे, तो वह क्या कर सकता है? हमले का प्रतिरोध तो करना पड़ेगा। क्योंकि अगर प्रतिरोध न किया जाए तो यह भी असज्जन को सहयोग है, यह भी बुराई को साथ देना है। समझें कि जीसस ने कहा है कि दूसरा गाल सामने कर दें। लेकिन सामने अगर आदमी बुरा है, तो मैं उसके लिए सहयोगी हो रहा हूं। और यह भी हो सकता है, मैं उसकी आदत बिगाड़ रहा हूं। और कल वह किसी और को भी चांटा मारेगा इसी आशा में कि दूसरा गाल भी आता ही होगा। सुना है मैंने कि मुल्ला नसरुद्दीन एक काफी हाउस के सामने बैठ कर रोज गपशप किया करता था। एक छोटा बच्चा, शरारती बच्चा रोज की आदत बना लिया कि वह आता और मुल्ला की पगड़ी में हाथ मार कर भाग जाता। पगड़ी नीचे गिर जाती, मुल्ला अपनी पगड़ी फिर ऊपर रख लेता। अनेक बार लोगों ने कहा कि मुल्ला, एक दफे इस लड़के को डांट दो। यह भी क्या बेतुकी बात है। और इस लड़के की कोई ताकत है? एक दफा जोर से इसको चांटा लगा दो, दुबारा नहीं लौटेगा। मुल्ला ने कहा, ठहरो, हमारे भी अपने रास्ते हैं। 369

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