Book Title: Tao Upnishad Part 03
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

View full book text
Previous | Next

Page 391
________________ विजयोत्सव ऐसे मना जैसे कि वह अंत्येष्टि हो हो, तो भारत के आदमी का नहीं किया जा सकता। क्या मामला है? होना नहीं चाहिए। अगर यह अहिंसा इतनी साधी जा रही है, तो भारत का आदमी अलग ही तरह का आदमी होना चाहिए। लेकिन आज हम देखते हैं कि मनुष्यता की दृष्टि से पश्चिम का हिंसक आदमी भी हम से बेहतर साबित हो रहा है। क्या कारण होगा? कारण एक है, और वह यह है कि हम जो छोटी-मोटी अहिंसा साधते हैं, उससे हम अपनी हिंसा के निकास का उपाय भी नहीं छोड़ते। फिर वह एक ही तरफ, एक दिशा में हमारी हिंसा यात्रा करने लगती है; बहुत सघन हो जाती है। इससे क्या नतीजा लिया जा सकता है? नतीजा एक लिया जा सकता है कि ऊपर से जो जबरदस्ती, ठोंक-पीट कर छोटी-मोटी हिंसा से बचेगा और छोटी-मोटी दिखाऊ अहिंसा साधेगा, वह एक तथ्य से वंचित हुआ जा रहा है जानने के कि उसके भीतर गहरी हिंसा भरी है। वह अपने आचरण में थोड़ा-बहुत उपाय करके भुला लेगा। और वह भुलाना बहुत खतरनाक है। आपके ऊपरी आचरण के अंतर से कोई बहुत फर्क नहीं पड़ता। आपके भीतर हिंसा है, उसे देखने से बहुत फर्क पड़ेगा, उसे पहचानने से बहुत फर्क पड़ेगा। उसकी जितनी गहरी समझ हो जाएगी, उतना ही उससे मुक्त होना आसान हो जाएगा। और जब तक आपके भीतर हिंसा का पहलू है, तब तक आपके जीवन में सौंदर्य नहीं हो सकता। यह दूसरी बात हम खयाल में ले लें, फिर सूत्र में प्रवेश करें। एक ही प्रकार का सौंदर्य है जगत में, और वह सौंदर्य है भीतर से सब तरह की हिंसा, विध्वंस की वृत्ति का विसर्जन हो जाना। जब भीतर किसी तरह की हिंसा की वृत्ति और विध्वंस का भाव नहीं रह जाता, तो भीतर की चेतना कमल के फूल की तरह खिल जाती है। हमने बुद्ध में, महावीर में वही सौंदर्य देखा है। एक सौंदर्य है शरीर का; वह केवल धारणा की बात है। वह कुछ है नहीं। बुद्ध कहीं भी जाएं, कैसे भी आदमी के पास से गुजरें, कहानी तो कहती है कि पशु के पास से भी गुजरें, तो भी उनके सौंदर्य से आंदोलित हो जाएगा। एक सौंदर्य शरीर का है; वह मान्यता की बात है। कहीं लंबी नाक सुंदर है, कहीं नहीं है। कहीं सफेद चमड़ी सुंदर है, कहीं नहीं है। अभी मैं एक अमरीकन विचारक की किताब पढ़ रहा था। उसने लिखा है कि सफेद चमड़ी जो है, एक तरह की बीमारी है। वह खुद ही सफेद चमड़ी का आदमी है; लेकिन बड़ी हिम्मत की बात लिखी है। उसने लिखा है कि सफेद चमड़ी जो है, वह एक तरह की बीमारी है। क्योंकि सफेद चमड़ी के आदमी में कुछ पिगमेंट कम हैं, जो काली चमड़ी के आदमी में हैं। और वे जो पिगमेंट हैं, जो काली चमड़ी के आदमी में हैं, जीवन की सुरक्षा के लिए बड़े जरूरी हैं। वह डाक्टर है आदमी और उसका कहना है कि सफेद चमड़ी जो है, वह एक तरह की बीमारी है। सफेद चमड़ी कोई सौंदर्य नहीं है। अगर आप अमेजान के किनारे बसे हुए जंगली आदमियों से पछे, तो वे सफेद चेहरे को सफेद कहते ही नहीं, वे पेल फेस कहते हैं, पीला चेहरा। और वे कहते हैं कि यह रुग्ण आदमी है। सफेदी कोई सौंदर्य नहीं है। मान्यता की बात है। इसलिए हमने कृष्ण को, राम को गोरा नहीं बनाया; क्योंकि उन दिनों हम गोरे को कोई सुंदर नहीं मानते थे। पता नहीं, राम और कृष्ण सांवले थे कि नहीं; यह दूसरी बात है। लेकिन एक बात पक्की है कि उस दिन जिन चित्रकारों ने उनके चित्र बनाए और मूर्तियां गढ़ीं, उनकी मान्यता यह थी कि सांवले का मुकाबला नहीं है, सांवला ही सुंदर है। इसलिए कृष्ण को हमने नीलवर्ण, श्याम नाम ही दे दिया, सांवला। उन दिनों भारत की धारणा ऐसी थी कि सफेदी में एक तरह का उथलापन है; सांवले में एक तरह का गहरापन है। जब नदी गहरी हो जाती है, तो सांवली हो जाती है; जब आकाश से बादल हट जाते हैं, तो आकाश सांवला हो जाता है; जितना गहन और गहरा होता है, उतनी नीलिमा छा जाती है। तो उन दिनों भारत की कल्पना थी सौंदर्य की सांवले की। सफेद को हम कभी संदर नहीं माने हैं। 381

Loading...

Page Navigation
1 ... 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432