________________
ताओ उपनिषद भाग ३
सरकार और जनता के होंगे। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन इंतजाम करने वाला वर्ग और जिनका इंतजाम करना है, ये दो वर्ग हमेशा निर्मित हो जाते हैं।
गहरे में देखें, तो वह जो बुद्धिमान है, वह हर हालत में हावी हो जाता है। कभी वह ब्राह्मण होकर हावी हो जाता है, कभी वह कमीसार होकर हावी हो जाता है। कभी वह कम्युनिस्ट सत्ता में कॉमिनटर्न का मेंबर होकर हावी हो जाता है, कभी वह ब्राह्मण की पंचायत में हावी हो जाता है। लेकिन वह आदमी वही है। आदमी में कोई फर्क नहीं है। कभी धन पर हावी होता है, तब वह सत्ता करता है। अगर धन पर भी हावी न हो, उस बुद्धिमान आदमी को निर्धन भी बना दिया जाए, तो वह फकीर होकर सत्ता शुरू कर देता है। लेकिन उससे सत्ता नहीं जाती। उससे सत्ता नहीं छीनी जा सकती। वह धन को लात मार सकता है, नंगा खड़ा हो सकता है। वह धन के द्वारा सिर झुकवाता था; वह नंगा खड़ा होकर सिर झुकवा लेता है। लेकिन कोई है जो सिर झुकवाता है, और कोई है जो सिर झुकाता है। और उन दोनों का फासला बना ही रहता है। उसमें कोई अंतर नहीं पड़ता, कोई भेद नहीं पड़ता।
__ अंतिम कलह और अंतिम वर्ग-संघर्ष तो बुद्धिमान और बुद्धिहीन का है। उसको मिटाना है तो ही समानता हो सकती है। और जिस दिन हम उसे मिटा लेंगे, उस दिन हम आदमी को मिटा देंगे। तब शायद असमानता निसर्ग है, . और समानता केवल एक आकांक्षा है; जिसमें हम सफल न हों तो अच्छां, हम सफल हो जाएं तो बुरा।।
यह सूत्र कहता है, वैसे लोग हैं, जो संसार को जीत लेंगे; उसे अपने मन के अनुरूप बनाना चाहेंगे।'
आदमी जीतना ही इसलिए चाहता है कि मन के अनुरूप बना ले। नहीं तो जीत का कोई मजा ही नहीं है। जीत का रस क्या है? इसे थोड़ा समझ लें, जीत का मजा क्या है?
जीत का मजा यह है कि फिर मैं मालिक हो गया तोडूं, बनाऊं, मिटाऊं, अपने मन के अनुरूप ढालूं। इसलिए दुनिया में दो तरह के जीतने वाले लोग हैं। एक, जिनको हम राजनीतिज्ञ कहें। वे आदमी को पहले जीतते हैं, और फिर उसको तोड़ कर अपने अनुरूप बनाने की कोशिश करते हैं।
स्टैलिन ने एक करोड़ लोगों की हत्या की। बीस करोड़ के मुल्क में एक करोड़ की हत्या छोटा मामला नहीं है। हर बीस आदमी में एक आदमी मारा। और एक करोड़ एक आदमी के द्वारा हत्या का कोई उल्लेख नहीं है सारे इतिहास में। लेकिन स्टैलिन कर क्या रहा था? कोई हत्यारा नहीं था, आदर्शवादी था। और सभी आदर्शवादी हत्यारे हो जाते हैं। आदर्शवादी था, लोगों को अपने अनुरूप बनाने की कोशिश कर रहा था। जो बाधा डाल रहे थे, उनको साफ कर रहा था। आकांक्षा भली थी। और जब भली आकांक्षा वाले लोग ताकत में होते हैं, तो बड़े खतरनाक होते हैं। क्योंकि बुरी आकांक्षा के लोग ताकत से तृप्त हो जाते हैं; भली आकांक्षा के लोग ताकत का उपयोग करके आदर्श को लाना चाहते हैं, तब तक तृप्त नहीं होते। तो स्टैलिन ने जब तक मुल्क को बिलकुल सपाट नहीं कर दिया, जरा सा भी विरोध का स्वर समाप्त नहीं कर दिया, और जब तक मुल्क को ढांचे में ढाल नहीं डाला, तब तक वह काटता ही चला गया। एक करोड़ लोगों की हत्या, स्टैलिन के मन को पीड़ा नहीं हुई होगी?
नहीं होती आदर्शवादी को। क्योंकि वह किसी को मार नहीं रहा है। किसी महान लक्ष्य के लिए, जो लोग बाधा बन रहे हैं, वे अलग किए जा रहे हैं। इसलिए महान लक्ष्य अगर न हो तो बड़ी हत्याएं नहीं की जा सकतीं। छोटे-मोटे हत्यारे बिना लक्ष्य के होते हैं, बड़े हत्यारे लक्ष्य वाले होते हैं। तो स्टैलिन ने महान सेवा का काम किया-अपनी तरफ से। लेकिन मुल्क को रौंद डाला। चाहता था मन के अनुरूप एक समान समाज निर्मित कर लिया जाए।
ऐसा नहीं है कि स्टैलिन को यह खयाल पहली दफा आया था। सिकंदर को यह खयाल था कि मैं दुनिया इसलिए जीतना चाहता हूं ताकि दुनिया को एक बना सकूँ। ये फासले देशों के टूट जाएं और सारी दुनिया एक हो। सारी दुनिया को एक बनाने के लिए वह जीत रहा था।
316