Book Title: Tao Upnishad Part 03
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

View full book text
Previous | Next

Page 327
________________ प्रकृति व स्वभाव के साथ अहस्तक्षेप 317 हिटलर अगर सारी दुनिया को रौंद डालना चाहता था, तो कारण था, लक्ष्य था । हिटलर कहता था कि मनुष्य में सभी जातियां बचने के योग्य नहीं हैं; सिर्फ एक नार्डिक, एक आर्य, शुद्ध आर्य जाति बचने के योग्य है। शुद्ध आर्य की वजह से तो सुभाष को भी हिटलर की बात में जान मालूम पड़ने लगी थी। सुभाष का मन भी नाजी की तरफ झुका हुआ मन था। इसलिए हिंदुस्तान से भाग कर वे जर्मनी पहुंच गए। और हिटलर ने जब सुभाष को पहली सलामी दिलवाई थी जर्मनी में तो उसने कहा था मैं तो केवल चार करोड़ लोगों का फ्यूहरर यह आदमी सुभाषचंद्र चालीस करोड़ लोगों का फ्यूहरर है। हिटलर मानता था कि शुद्ध आर्य ही केवल मनुष्य हैं, बाकी नीची जाति के लोग हैं। उनको ठीक-ठीक मनुष्य नहीं, सब-ह्यूमन, उप-मनुष्य कहा जा सकता है। उनको हटाना है। उनके ताकत में होने की वजह से ही सारी दुनिया में उपद्रव है। इसलिए उसने लाखों यहूदियों को काट डाला; क्योंकि वे नार्डिक नहीं थे। बड़े मजे से काट डाला; क्योंकि एक महान लक्ष्य — शुद्ध रक्त, शुद्ध मनुष्य, सुपर मैन, एक महा मानव को बनाना और बचाना है। सारी दुनियाको उपद्रव में डाल दिया। इतना बड़ा रक्तपात, इतना बड़ा युद्ध, इस महान आदर्श के आस-पास हुआ। और अगर जर्मन जाति उसके साथ लड़ रही थी, तो पागल नहीं है। जर्मन जाति इस जमीन पर सबसे ज्यादा बुद्धिमान जाति कही जा सकती है। फिर इतने बुद्धिमानों को इस पागल आदमी ने कैसे प्रभावित कर लिया ? महान लक्ष्य के कारण। यह बुद्धिमान जाति भी आंदोलित हो उठी। इसको लगा कि बात तो ठीक है, शुद्ध मनुष्य बचना चाहिए, तो दुनिया स्वर्ग हो जाएगी। उस शुद्ध मनुष्य के लिए कुछ भी किया जा सकता है। एक बार आदर्श आंख को अंधा कर दे, तो आदमी कुछ भी कर सकता है। राजनीतिज्ञ पहले आदमी को अपनी ताकत में लाना चाहता है, फिर आदमी को बदलता है। धार्मिक गुरुओं ने भी यह काम किया है। वे दूसरी तरफ से यात्रा शुरू करते हैं। वे आदमी को बदलना शुरू करते हैं । और जैसे-जैसे आदमी बदलने लगता है, उनकी ताकत बढ़ने लगती है। राजनीतिज्ञ पहले ताकत स्थापित करता है। वह कहता है, पहले पावर, फिर क्रांति । धर्मगुरु कहता है, पहले क्रांति, ताकत तो उसके पीछे चली आएगी। इसलिए धर्मगुरु के पास आप जाएं तो आपको बिना बदले नहीं मानता। कहता है, छोड़ो सिगरेट पीना ! छोड़ो शराब पीना ! यह मत खाओ, वह मत खाओ। अगर आप उसकी मानते हैं, तो उसने आप पर कब्जा करना शुरू कर दिया। जैसे आप मानते जाएंगे, वह आपको बदलने लगा। जिस दिन आप बदलने के लिए पूरी तरह राजी हो जाएंगे, उस दिन उसकी ताकत आपके ऊपर पूरी हो गई। धर्मगुरु राजनीतिज्ञ की तरह ही उलटी यात्रा कर रहा है। इसलिए वास्तविक धार्मिक व्यक्ति आपको बदलना नहीं चाहता। इस फर्क को थोड़ा खयाल में रख लेना । क्योंकि जब मैं कह रहा हूं धर्मगुरु आपको बदलना चाहता है, तो मेरा मतलब यह नहीं है कि बुद्ध आपको बदलना चाहते हैं, या महावीर आपको बदलना चाहते हैं, या लाओत्से आपको बदलना चाहते हैं। न; लाओत्से, महावीर या बुद्ध या जीसस जैसे लोग आपको बदलना नहीं चाहते। क्योंकि आपके ऊपर कोई ताकत कायम करने की आकांक्षा नहीं है। उन्होंने अपने जीवन में कुछ जाना है, वह आपको भी दे देना चाहते हैं, दिखा देना चाहते हैं, उसमें आपको साझीदार बना लेना चाहते हैं। अगर उस साझेदारी में कोई बदलाहट आप में होने लगती है, उसके जिम्मेवार आप हैं। अगर उस साझेदारी में आप बदलने लगते हैं तो उसके मालिक आप हैं। आप बुद्ध को जिम्मेवार नहीं ठहरा सकते। बुद्ध से आपकी तरफ जो संबंध है, वह आपको बदलने का कम, आपको कुछ देने का ज्यादा है। बदलने वाला तो आपसे कुछ लेता है, ताकत लेता है । बुद्ध को आपसे कोई ताकत नहीं लेनी है, बुद्ध को आपसे कुछ लेना ही नहीं है। आपके पास कुछ है भी नहीं जो आप बुद्ध को दे सकें । बुद्ध को आपकी तरफ से कुछ भी नहीं जाता। बुद्ध को कुछ मिला है। जैसे कि आप भटक रहे हों अंधेरे में और एक आदमी के पास दीया हो और दीया जलाने की

Loading...

Page Navigation
1 ... 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432