Book Title: Tao Upnishad Part 03
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

View full book text
Previous | Next

Page 334
________________ ताओ उपनिषद भाग ३ वे ऐसा मुझसे कह रहे हैं। कोई नई बात नहीं है। पांच साल का था, तब से वे मेरी आलोचना कर रहे हैं इसी तरह। यह कोई अर्थनीति का सवाल नहीं है। जो भी मैं करता हूं, उसको वे गलत कहते हैं। पत्रकार, जिसने यह सुना, वह वापस गया। उसने बड़े भाई से कहा कि वह आइजनहावर ऐसा कह रहे थे। बड़े भाई ने कहा कि अभी भी मैं उसको धूल चटा सकता हूं। बड़े भाई ने कहा कि अभी भी एक धक्का दूं तो धूल चटा सकता हूं। वह आदमी वापस लौटा। उसने आइजनहावर से कहा कि हद हो गई, आपके बड़े भाई कहते हैं कि एक धक्के में आपको चारों खाने चित्त कर देंगे। आइजनहावर ने कहा, हद हो गई, यह बात भी वे मुझसे जब मैं पांच साल का था, तब से कह रहे हैं। और मैं आपसे कहता हूं कि मुझे धूल नहीं चटा सकते। यह मैं भी तब से कह रहा हूं। __ अगर आप लौटें अपने पीछे, आप बदले नहीं हैं। आप आदमी वही हैं। आपके कपड़े बड़े हो गए, शरीर बड़ा हो गया; थोड़ा भीतर खोज-बीन करें, आपका अणु वही का वही है। ढंग बदल गए होंगे, रास्ते बदल गए होंगे; लेकिन भीतर की गहरी सच्चाइयां नहीं बदलतीं। और कभी नहीं बदलतीं। . इससे निराश मत हो जाना कि तब तो इसका मतलब यह हुआ कि कुछ हो ही नहीं सकता! नहीं, आप करना चाहें तो कुछ भी नहीं हो सकता। आप स्वीकार कर लें तो बहुत कुछ होता है। लेकिन वह . किए से नहीं होता। जिस दिन आप अपने को स्वीकार कर लेते हैं और कह देते हैं मैं ऐसा हूं, बुरा या भला, क्रोधी, ईर्ष्यालु, जैसा भी हूं, ऐसा हूं-यह सत्य का पहला स्वीकार है कि मैं ऐसा हूं-इसमें कोई एतराज नहीं मुझे, परमात्मा ने मुझे ऐसा बनाया है, इस स्वीकृति के साथ ही पहली दफे आपकी क्षुद्रता समाप्त हो जाती है और आप विराट के अंग हो जाते हैं। और जिसने आपको बनाया है वह आपके भीतर आपको फिर से बनाने में संलग्न हो जाता है। सच बात यह है कि जब तक आप अपने को बनाने की कोशिश करते हैं, परमात्मा के हाथ रुके रहते हैं, विराट के हाथ रुके रहते हैं। जिस दिन आप अपने को छोड़ देते हैं, उसी दिन उसके हाथ फिर आपको बनाने लगते हैं। लेकिन वह बनावट बड़ी और है। लाओत्से उसी को कहता है कि जो ऐसा करेगा, वह और बिगाड़ देता है। जो उसे पकड़ना चाहता है, वह उसे खो देता है। निसर्ग पकड़ में नहीं आता। लेकिन जो अपने को निसर्ग में छोड़ देता है, और निसर्ग के साथ बहने लगता है, निसर्ग उसकी पकड़ में तो नहीं आता, लेकिन निसर्ग उसके लिए साथी, सहयोगी और उसकी आत्मा बन जाता है। ___'क्योंकि कुछ चीजें आगे जाती हैं और कुछ चीजें पीछे-पीछे चलती हैं।' हमें खयाल नहीं है कि कुछ चीजें आगे जाती हैं और कुछ पीछे-पीछे चलती हैं। जैसे मैंने कहा, स्वीकार आगे जाता है और क्रांति पीछे-पीछे चलती है। तथाता आगे जाती है—मान लेना कि मैं ऐसा हूं और जरा भी इसमें मुझे एतराज नहीं है, क्योंकि यह एतराज परमात्मा के प्रति ही एतराज है। अब लोग मजेदार हैं। लोग कहे जाते हैं कि परमात्मा ने आदमी को बनाया। और आदमी को कोई स्वीकार नहीं करता। लोग कहते हैं कि भीतर आत्मा है। लेकिन उसको कोई स्वीकार आप भी नहीं करते। आप कहते हैं कि मैं प्रभु की कृति हूं। लेकिन इसमें भी आप सुधार करना चाहते हैं, तरमीम करना चाहते हैं। आप इसमें भी कुछ हेर-फेर करना चाहते हैं। अगर परमात्मा आपसे सलाह लेता, तो आप कभी बनने वाले नहीं थे; क्योंकि आप इतनी योजनाएं बदलते। मैंने एक मजाक सुना है। मैंने सुना है, एक बेटा अपने बाप से पूछ रहा था कि परमात्मा ने आदमी को बनाया, फिर अदम की हड्डी निकाल कर ईव को, स्त्री को बनाया। तो उस बेटे ने पूछा कि परमात्मा ने पहले आदमी को क्यों बनाया, पहले स्त्री को क्यों नहीं बनाया? तो उसके बाप ने कहा, तू जब बड़ा होगा तो समझ जाएगा। अगर परमात्मा 324

Loading...

Page Navigation
1 ... 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432