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ताओ उपनिषद भाग ३
का मवाद पट्टी को फोड़ कर बाहर
मुझ करना होगा। धीरे-धीरे मैं
प
घाव हो जाएगा. क्योंकि
भलीभांति पता है कि मैं कुछ भी नहीं है। वह जो नोबडीनेस का, ना-कुछ होने का भाव है, वही हमारी तड़पन बन जाता है कि हम सिद्ध करें जगत में कि मैं कुछ हूं।
लेकिन कितना ही हम सिद्ध करें, वह जो ना-कुछ होने का भीतर छिपा हुआ बोध है, वह दब जाएगा, नष्ट नहीं हो सकता। और कितना ही हम जीतते चले जाएं, भय बना ही रहेगा कि कोई और शक्तिशाली होगा जो मुझे पराजित कर सकता है। और मुझे अपनी शक्ति बढ़ाते ही रहनी होगी। और किसी भी स्थिति में यह स्थिति नहीं बन सकती कि मेरा मूल जो भय था, भीतर की हीनता थी, वह मिट जाए। एक चक्कर है, एक दुश्चक्र, एक वीसियस सर्किल है। वह दुश्चक्र ऐसा है कि जो मूल चीज है, उसको तो हम स्वीकार कर लेते हैं; फिर उसके विपरीत कुछ करने में लग जाते हैं।
मेरे पैर में एक घाव है। उसको तो मैं नहीं मिटाता; आपकी आंखों में घाव न दिखाई पड़े, इसलिए मलहम-पट्टी कर लेता हूं। वह मलहम-पट्टी, आपकी आंखों में घाव न दिखाई पड़े, इसलिए है। उस मलहम-पट्टी में वह औषधि नहीं है, जो मेरे घाव को ठीक करे। वह मलहम-पट्टी मैं अपने घाव पर नहीं, आपकी आंखों पर कर रहा हूं। आपको मैं धोखा दे दूंगा; मेरा घाव बढ़ता चला जाएगा। आज नहीं कल, घाव की मवाद पट्टी को फोड़ कर बाहर आ जाएगी। तब और मोटा पलस्तर मुझे करना होगा। धीरे-धीरे मैं पलस्तरों में घिर जाऊंगा और भीतर सब घाव ही घाव हो जाएगा; क्योंकि मेरी पूरी चेष्टा यह है कि किसी को मेरा घाव पता न चले।
लाओत्से जैसे लोग आपके घाव को आमूल रूपांतरित करना चाहते हैं। वे कहते हैं कि हीनता मिटनी चाहिए; विजय को पाने की कोई जरूरत नहीं है। मैं कुछ हूं, इसका पता चलना चाहिए; इसे दूसरों के सामने सिद्ध करने की कोई भी जरूरत नहीं है। और कितना ही सिद्ध करो, अगर भीतर मुझे पता नहीं है कि मैं हूं, कुछ हूं, तो मैं कितना ही दूसरों को समझा लूं, आखिर में मैं पाऊंगा कि मैं वहीं का वहीं खड़ा हूं। दूसरे भला राजी हो जाएं, लेकिन मेरे भीतर का कंपन तो कायम रहेगा। जो आदमी सड़क पर खड़ा था कल, आज राष्ट्रपति हो गया हो; तो भी उसके भीतर की घबड़ाहट और हीनता वही की वही रहेगी। आज वह कम प्रकट करेगा, क्योंकि उसके पास शक्ति का आयोजन है । चारों तरफ। इसलिए आज वह आपके सामने प्रकट नहीं करेगा, आपके सामने उसकी कमजोरी छिपी रहेगी। लेकिन खुद के सामने तो जाहिर रहेगी।
इसलिए एक बड़ी अजीब घटना घटती है। जब आदमी बहुत धन इकट्ठा कर लेता है, तब उसे पहली दफे पता चलता है कि मैं कितना दरिद्र हूं। और जब आदमी के चारों तरफ फौज-फांटा खड़ा हो जाता है और भारी शक्ति इकट्ठी हो जाती है, तब उसे पता चलता है कि मैं कितना कमजोर हूं। यह और तीव्रता से पता चलता है; क्योंकि कंट्रास्ट मिल जाता है। जैसे किसी ने काली दीवार पर सफेद खड़िए से लकीर खींच दी हो। और भी ज्यादा प्रगाढ़ होकर दिखाई पड़ती है कमजोरी।
___ लेकिन हमारा तर्क यह है कि हम और लोगों को हराएं, और लोगों को मिटाएं, और लोगों को समाप्त कर दें, तो मैं शक्तिशाली और विजेता हो जाऊंगा। मनुष्य के मन की यह बुनियादी भूल है। इस भूल के खिलाफ यह सूत्र है।
'झुकना है सुरक्षा। टु यील्ड इज़ टु बी प्रिजर्ल्ड होल।' झुकना है सुरक्षा। अगर बचना है तो झुक जाओ।
कभी देखा है, जोर की आंधी आती है और लाओत्से को मानने वाले चित्रकारों ने इस घटना के बहुत-बहुत चित्र बनाए हैं-जोर की आंधी आती है, बड़ा वृक्ष अकड़ कर खड़ा रह जाता है। न केवल अकड़ कर, बल्कि आंधी से लड़ता है। छोटे-छोटे पौधे, घास के तिनके झुक जाते हैं। क्षण भर बाद आंधी जा चुकी होगी, बहुत से बड़े वृक्ष गिर चुके होंगे, जड़ें उखड़ गई होंगी, छोटे घास के तिनके वापस अपनी जगह खड़े हो गए होंगे।
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