Book Title: Tao Upnishad Part 03
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 304
________________ ताओ उपनिषद भाग ३ 'जो सम्मान और गौरव से परिचित है, लेकिन अज्ञात की तरह रहता है, वह संसार के लिए घाटी बन जाता है। और संसार की घाटी होकर उसको वह सनातन शक्ति प्राप्त होती है, जो स्वयं में पर्याप्त है।' लाओत्से की दृष्टि बड़ी उलटी है। आमतौर से हम समझते हैं कि शक्ति होती है आक्रमण में। लाओत्से कहता है, शक्ति होती है समर्पण में। और आक्रमण की शक्ति को तो तोड़ा भी जा सकता है, काटा भी जा सकता है, क्योंकि आक्रमण से बड़ा भी आक्रमण हो सकता है। लेकिन समर्पण से बड़ा कोई समर्पण नहीं हो सकता। समर्पण का अर्थ ही आखिरी होता है। उससे बड़ा कुछ होता नहीं। तो आप ऐसा नहीं कह सकते कि यह समर्पण थोड़ा छोटा और यह समर्पण थोड़ा बड़ा। समर्पण का अर्थ ही पूरा है। जैसे कि आप यह नहीं कह सकते कि यह वर्तुल अधूरा, यह सर्कल अधुरा, और यह सर्कल पूरा। सर्कल का अर्थ ही होता है कि वह होगा तो पूरा होगा, नहीं तो नहीं होगा। कोई अधूरा वर्तुल नहीं होता, नहीं तो वह वर्तुल ही नहीं है। वर्तुल पूरा ही होगा। ऐसे ही कोई प्रेम अधूरा नहीं होता। या तो होता है, या नहीं होता। कम-ज्यादा भी नहीं होता। या तो होता है, या नहीं होता। कोई मात्राएं नहीं होती। समर्पण पूरा है। आप यह नहीं कह सकते किसी से कि मैं आधा समर्पण करता हूं। आधा समर्पण का क्या । अर्थ होगा? आधे समर्पण का कोई अर्थ ही नहीं होता। असल में, आप समझ नहीं पा रहे हैं, आप समर्पण कर ही नहीं रहे हैं। इसलिए आप कहते हैं, आधा समर्पण करता हूं। आप अपने को पीछे बचा ले रहे हैं। वह जो बचा हुआ है, वही तो समर्पण में बाधा है। समर्पण का अर्थ है परा। समर्पण होता ही परा है। इसलिए आक्रमण से बड़ा आक्रमण हो सकता है और आक्रमण पराजित किया जा सकता है। समर्पण से बड़ा कोई समर्पण नहीं होता, इसलिए समर्पण की कोई पराजय नहीं है। लेकिन हम सोचते हैं, आक्रमण में है शक्ति। पुरुष का चित्त ऐसा ही सोचता है। लाओत्से कहता है, समर्पण में है शक्ति। और लाओत्से के कहने के बहुत कारण हैं। पहला तो यह कि समर्पण से बड़ा कोई समर्पण नहीं हो सकता। दूसरा, शक्ति अगर वस्तुतः हो तो आक्रामक नहीं हो सकती। कमजोर ही आक्रमण करता है। असल में, कमजोरी ही शक्ति पर भरोसा रखती है। शक्तिशाली आक्रमण नहीं करता। महावीर ने कहा है, शक्तिशाली अहिंसक हो जाता है। कमजोर कभी अहिंसक नहीं हो सकता; कमजोर को तो सदा ही आक्रमण पर भरोसा रखना पड़ेगा। मैक्यावेली, जो कि आक्रमण के विज्ञान में गहरा गया है, वह कहता है कि आक्रमण वस्तुतः सुरक्षा का उपाय है। वह ठीक कहता है। वह कहता है कि अगर अपनी सुरक्षा चाहिए हो, तो इसके पहले कि कोई आक्रमण करे, तुम आक्रमण कर देना। इसकी प्रतीक्षा मत करना कि जब कोई आक्रमण करेगा, तब हम सुरक्षा कर लेंगे। क्योंकि तब तुम पीछे पड़ गए, तुम एक कदम पीछे पड़ गए। और आक्रमण करने वाले की संभावना बढ़ जाएगी जीतने की। तो वह कहता है, सुरक्षा का एकमात्र उपाय है आक्रमण। लेकिन सुरक्षा कौन चाहता है? कमजोर सुरक्षा चाहता है। और इसलिए कमजोर आक्रामक होता है। अगर हम अपनी जिंदगी में भी देखें, अगर आप अपने भीतर भी देखें, तो जिन क्षणों में आप कमजोर होते हैं, उन क्षणों में आप क्रोधी होते हैं। जिन क्षणों में आप कमजोर नहीं होते, आप क्रोधी नहीं होते। जिन क्षणों में आप भयभीत होते हैं, उन क्षणों में भय प्रकट न हो जाए, इसलिए आप बड़ी अकड़ दिखलाने की कोशिश करते हैं। वह अकड़ आपकी व्यवस्था है कि आपका भय प्रकट न हो जाए। जो भयभीत नहीं होता, वह अकड़ा हुआ भी नहीं होता। जो कमजोर नहीं होता, वह क्रोधी भी नहीं होता। शक्तिशाली मनुष्य कभी भी क्रोधी नहीं देखे गए हैं। जितना कमजोर आदमी होगा, उतना क्रोधी होता है। 294

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