________________
ताओ उपनिषद भाग ३
उसके कारण हैं; क्योंकि आपके आस-पास जो लोग हैं, उनका भी तर्क यही है। इसे हम थोड़ा समझ लें। मैं भी प्रशंसा चाहता हूं; आप भी प्रशंसा चाहते हैं; आपका पड़ोसी भी प्रशंसा चाहता है। सारा संसार प्रशंसा चाहता है। जहां सभी लोग प्रशंसा चाहते हैं, वहां जो आदमी भी प्रशंसा चाहने की चेष्टा में आगे बढ़ेगा, वे सारे लोग उसकी निंदा शुरू कर देंगे। क्योंकि खुद को जो ऊपर ले जाना चाहते हैं, वे दूसरे को नीचे रखें, यह अनिवार्य है, आवश्यक है। अगर ऐसे हर किसी को मैं ऊपर जाने दूं तो मेरी अपनी संभावनाएं खो रहा हूं।
और इस जगत में ऊपर कम स्थान होते जाते हैं। जितने ऊपर जाइए, उतना स्थान कम। पहाड़ की चोटी है, पिरामिड की तरह है यह जगत। यहां जितने ऊपर जाइए, उतने स्थान कम होते चले जाते हैं। और जितने ऊपर जाइए, उतने दुश्मन बढ़ते चले जाते हैं। जो आदमी बिलकुल शिखर पर पहुंचता है, सारा संसार उसका दुश्मन हो जाएगा।
और सारा संसार चाहेगा कि तुम जमीन पर आओ। और सारा संसार साथी हो जाएगा आपको जमीन पर उतारने में। उन सबके आपस की कलह हैं, वह अलग बात है। लेकिन मैक्यावेली ने लिखा है कि अपने शत्रु का शत्रु अपना मित्र है। ठीक है। जिस आदमी को नीचे गिराना है, सब गिराने वाले इकट्ठे हो जाएंगे। हालांकि बात अलग है, कल यह जब गिर जाएगा, तो ये आपस में फिर लड़ेंगे। क्योंकि फिर सवाल उठेगा कि कौन ऊपर उठे।
देखा, पिछले महायुद्ध में क्या हुआ? जो सदा के दुश्मन थे, वे मित्र हो गए। कोई सोच सकता था कि स्टैलिन और चर्चिल और रूजवेल्ट साथ खड़े हो सकते हैं! कल्पना के बाहर था। लेकिन हिटलर जरा सीमा के बाहर चला जा रहा था। वह बिलकुल शिखर पर ही होने की कोशिश कर रहा था। तब तो रूजवेल्ट, चर्चिल और स्टैलिन को साथ खड़े होने में कोई कठिनाई न आई। एकदम मित्र बन गए। लेकिन यह बात जाहिर थी कि हिटलर के मरते ही यह मित्रता तत्क्षण टूट जाएगी। यह मित्रता ज्यादा देर नहीं टिक सकती। यह मित्रता तो सिर्फ हिटलर की वजह से थी। हिटलर के मरते ही खतम हो गई। दूसरे महायुद्ध में जो मित्र थे, युद्ध के हटते ही शत्रु हो गए। रूस और अमरीका फिर शत्रुता में खड़े हो गए।
चीन कम्युनिस्ट है; कोई सोच नहीं सकता कि अमरीका से कैसे मित्रता बन सकती है। लेकिन बिलकुल सहज है, नियम से है; बनेगी। बननी ही चाहिए। क्योंकि अपने शत्रु का शत्रु। चीन और रूस के बीच जरा सी भी कलह' अगर खड़ी होती है तो अमरीका और चीन के बीच मैत्री बन जाएगी।
तो इस जगत में जो आदमी प्रशंसा की आकांक्षा करता है, सभी प्रशंसा चाहने वाले उसके शत्रु हो जाएंगे। वे सब उसको नीचे खींचने की कोशिश करेंगे। वे निंदा करेंगे।
और ध्यान रहे, किसी की प्रशंसा करनी बहुत मुश्किल काम है और निंदा करनी बहुत आसान काम है। क्योंकि जब भी आप किसी की प्रशंसा करो, लोग पूछेगे, प्रमाण क्या है? लेकिन आप किसी की निंदा करो, कोई प्रमाण नहीं पूछेगा कि प्रमाण क्या है। क्यों? क्योंकि हम चाहते ही हैं कि निंदा सही हो।
अपनी प्रशंसा का हम प्रमाण नहीं मांगते; दूसरे की निंदा का हम प्रमाण नहीं मांगते। अपनी निंदा का हम प्रमाण मांगते हैं; दूसरे की प्रशंसा का प्रमाण मांगते हैं। प्रमाण क्या है? गवाह कौन है ?
__ अगर कोई आपसे आकर कहता है कि फलां आदमी बहुत ईमानदार है, तो आप कहते हैं, प्रमाण क्या है? अभी बेईमानी का मौका न मिला होगा। या तुम्हारे पास सबूत क्या है? और अगर यह आदमी सबूत भी ले आए तो हम सोचेंगे कि यह आदमी खुद भी लाने वाला ईमानदार है या नहीं? या जरूर कोई साजिश होगी, कोई षड्यंत्र होगा, कोई हाथ होगा। नहीं तो कोई किसी की प्रशंसा क्यों करेगा?
कोई आपसे आकर कहे कि फलां आदमी बेईमान है, चोर है। आप कहते हैं, मैं पहले ही जानता था, यह होगा ही। इसके लिए कोई प्रमाण की आवश्यकता नहीं है।
72