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ताओ है झुकने वाली होने व मिटने की कला
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कर कहते रहते हैं। वही, जो हजार दफे कहा गया है। नसरुद्दीन ने बहुत सोच कर उसको कहा कि एक सूत्र पर जीवन को चलाओ : डोंट गेट एंग्री, कभी क्रोधित मत होओ।
या तो वह आदमी मूढ़ था, या बहरा था, या उसकी समझ में नहीं पड़ा, या उसने सुना, नहीं सुना। उसने फिर कहा कि वह तो ठीक है; कोई ऐसी चीज बताएं कि जीवन बदल जाए। मुल्ला ने जोर से कहा कि बता दिया एक दफा, ठीक से याद कर लो, डोंट गेट एंग्री, क्रोधित मत होओ।
लेकिन वह आदमी मूढ़ था, कि बहरा था, कि क्या था, कि वह नहीं समझा और उसने कहा कि अब आ ही गया हूं इतनी दूर तो कोई एक ऐसा गोल्डन रूल, कोई ऐसा स्वर्ण-सूत्र कि जिंदगी बदल जाए। मुल्ला ने डंडा उठा कर उसके सिर पर दे दिया और कहा कि हजार दफे कह चुका, डोंट गेट एंग्री ।
शायद मुल्ला को खयाल भी नहीं आया होगा कि क्या हुआ जा रहा है। हमारे खुद के सिद्धांत भी हमारे काम तो नहीं पड़ते। हमारी सलाह हमारे ही काम नहीं पड़ती। सलाह देना बहुत बुद्धिमानी की बात नहीं है। कोई भी दे देता है। अपनी सलाह को भी पूरा करना अति कठिन है।
बुद्ध ने आनंद से कहा कि तू इतने दिन से मेरे साथ है, तू अब तक इतनी सी छोटी बात नहीं समझ पाया ! आनंद तो आग से भर गया है। उसने बुद्ध से कहा, अभी आप क्या कहते हैं, मुझे कुछ सुनाई नहीं पड़ता। जब तक यह आदमी यहां बैठा हुआ है, जिसने आपके ऊपर थूका है, तब तक मैं होश - हवास में नहीं हूं। बुद्ध ने कहा, आनंद, वह भी होश - हवास में नहीं है। नहीं तो थूकता क्यों ? तू भी होश - हवास में नहीं है; क्योंकि मैं तुझे कहता हूं, तू कहता है मुझे कुछ समझ में सुनाई नहीं पड़ता। तुम दो पागलों के बीच मेरी क्या गति है, इस पर भी तो सोचो।
जीवन कुछ गहन सूत्रों पर खड़ा है। उनका खयाल न हो तो कितना ही हम उनको सिद्धांतों की तरह मान लें, हम उनके विपरीत व्यवहार किए चले जाते हैं। लाओत्से का यह सूत्र तो परम सूत्र है, सुरक्षा का अर्थ है झुक जाना। लेकिन यह अति कठिन है। यह बहुत कठिन है। यह क्रोध न करना ही बहुत कठिन पड़ता है, जो कि बहुत साधारण सा सूत्र है। झुक जाना सुरक्षा है, यह तो बहुत उलटा मालूम पड़ता है, पैराडाक्सिकल मालूम पड़ता है। जीतना है तो हार जाओ; सम्मान पाना है तो सम्मान चाहो ही मत। यह तो बहुत उलटा है।
लेकिन जितने गहरे हम जीवन में जाएंगे, उतने उलटे सूत्र हमको मिलेंगे। उसका कारण यह नहीं है कि वे उलटे हैं। उसका कारण है कि हम सिर के बल खड़े हैं; हमें उलटे दिखाई पड़ते हैं। हम सिर के बल खड़े हैं। हमारे पूरे जीवन की चिंतना उलटी है। दुख भी पाते हैं उसके कारण, फिर भी हमें खयाल नहीं आता कि हम सिर के बल खड़े हैं। और नहीं आने का कारण है कि आस-पास हमारे जो लोग हैं, वे भी सिर के बल खड़े हैं। ऐसा समझें कि किसी गांव में आप पहुंच जाएं महायोगियों के, जहां सभी शीर्षासन कर रहे हों। तो अगर आप में थोड़ी भी बुद्धि हो तो आपको भी उलटा खड़ा हो जाना चाहिए। अन्यथा आप उलटे आदमी मालूम पड़ेंगे।
जीसस के पास कोई आया है और उसने जीसस से कहा कि आपकी बातें उलटी मालूम पड़ती हैं। जीसस ने कहा, मालूम पड़ेंगी ही; क्योंकि तुम सिर के बल खड़े हो ।
लेकिन तुम्हें याद भी नहीं आएगा; क्योंकि तुम्हारे चारों तरफ भी लोग वैसे ही खड़े हैं। पुरानी पीढ़ी मरते-मरते नई पीढ़ी को सिर के बल खड़ा होना सिखा जाती है। संक्रामक है बीमारी, एक-दूसरे को पकड़ती चली जाती है। फिर इन उलटे खड़े लोगों में अगर सफल होना हो तो उलटा खड़ा होना जरूरी है।
इसलिए लाओत्से का सूत्र उलटा दिखाई पड़ता है। अन्यथा सीधा है। अगर प्रशंसा चाही तो निंदा मिलेगी। नहीं चाही प्रशंसा तो भी मिल सकती है; लेकिन छुएगी नहीं। पर क्यों ? प्रशंसा चाही तो निंदा क्यों मिलेगी ? क्या कारण है? क्या हर्ज है प्रशंसा चाहने में? निंदा क्यों मिलेगी ?