Book Title: Tandulvaicharik Prakirnakam Author(s): Ambikadutta Oza Publisher: Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha View full book textPage 5
________________ SheMahavir Jain AradhanaKendra Acharya Sa Kasagar Gyanmandir दो शब्द जैन सूत्रों में (श्री भगवती सूत्र में तथा दूसरे दूसर सूत्रां में ) भिन्न भिन्न स्थानों पर गर्भ विषयक वन बाया है। इस पइण्णामा (प्रकीर्णको ) में तन्दुलवयाकी पांचवी पदण्णा है । यह मन्य किसी प्राचीन पूर्वधर आचार्य का बनाया हुआ है । इस प्रन्थ में विस्तारपूर्वक गर्भ विषयक वर्णन किया गया है । यह सारा वर्णन एक ही जगह भाजाने के कारण इस विषय को जानने की रुचि रखने वालों की सुविधा के लिए श्री श्वेताम्बर साधुमानी जैन हितकारिणी संस्था बीकानेर क बार से इस पन्ध का हिन्दी अनुवाद करवा कर प्रकाशित किया जा रहा है। ग्रन्थ के अन्तिम भाव में नारायभाय और नारी जाति के सम्बन्ध में वर्णन करते हुए प्रन्धकार ने जो विचार प्रकट किये हैं चे एकपक्षीय है, क्योंकि न तो नारी हो चुरी है और न नर दी, किन्तु बुरी है विकार होष्ट । इसलिए यदि अन्धकार ने बिना किसी लिङ्ग भेद के विकार हांट को बुरा बताया होता और मानवता के दृष्टिकोण से नारी-स्वभाव का विषचन किया होता तो अच्छा होता । इससे प्रन्थ की उपयोगिता बढ़ जाती । नारीश्वभाष का इस प्रकार वर्मान करने में प्रन्यकार का क्या भाशय था यह यथार्थ रूप से कुछ नही कहा जा सकता। इस पुस्तक में प्रूफ सम्बन्धी तथा अन्य कोई अशुद्धि रह गई हो तो पाठक महोदय अवश्य मूचित करें ताकि आगामी भावृत्ति में यथोचित सुधार कर दिया जाय । सम्पादक और मंशोधक For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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