________________
| दो बातें पाठकों से
आप सबके समक्ष यह पुस्तक स्वप सिद्धान्त प्रस्तुत है। इस पुस्तक में क्या है और इसके लेखन का ध्येय क्या है ? यह यहाँ पर व्यक्त कर रहा हूँ। __मैंने पिछले अनेक वर्षों से विभिन्न विषयों पर कार्य किया है जिसमें से एक विषय स्वप्न भी था। अपने अनुभवों और चरित्र अध्ययन के आधार पर स्वप्न की विशेषता से सम्बन्धित मुझे यही स्पष्ट करना व कहना है कि स्वप्न प्रतीकात्मक अर्थात् 'सिम्बोलाजिकल' होते हैं जो कि अपने आप में कोई न कोई सन्देश लिये रहते हैं। इन सन्देशों को हमारे आर्ष मनीषियों ने बहुत पहले अनुभव कर लिया था। इसी विषय पर विदेशों में अत्यधिक शोध-कार्य हुआ और इसे भिन्न-भिन्न दृष्टियों से देखा गया। 'जिसका जितना ज्ञान, उसका उतना मान' वाले सिद्धान्तानुसार विद्वान् क्रमश: कार्यरत रहे।
भारतीय व पाश्चात्य विद्वानों ने स्वप्न विषय पर बहुत कार्य किया है सम्भवत: यही कारण है कि साईकिल और रेलगाड़ी विषयक स्वप्नों के भी फलादेश प्राप्त होते हैं जबकि यह शीर्षक प्राचीन नहीं है। स्वप्न समीक्षा करने पर कभी-कभी लगता था कि यह जो व्यक्ति अपना स्वप्न सुना रहा है उसके भीतर कुछ रहस्य भी है और इसी रहस्य की खोज का परिणाम है स्वप्न सिद्धान्त।
होता क्या था कि जब दृष्टा स्वप्नावस्था में कोई स्वप्न देखता था तो उसे शुभ या अशुभ नामक दो विभागों में बाँट लिया करता था। शुभ स्वप्न के कारण व्यक्ति मस्त रहता था जबकि अशुभ स्वप्न के कारण परम्परागत् पंडितों की दुकानदारी चल जाती थी। अशुभ स्वप्न के निवारण को महामृत्युञ्जय जप करवाया जाता था और यह कोई सोचता भी नहीं था कि