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मन्त्र कर्ण पिशाचिनी का है जिसे अनेक साधकों ने सत्य प्रमाणित किया है । प्रस्तुत कर्ण पिशाचिनी विद्या का प्रयोग कुछ इस प्रकार से करते हैं कि आम की लकड़ी का एक पट्टा बनवाकर ले आते हैं । रात्रि के समय इस पट्टे पर गुलाल बिछा देते हैं और अनार की कलम से गुलाल के ऊपर मन्त्र लिखते हैं । उसके बाद उसे मिटा देते हैं। पुन: उसके ऊपर लिखते हैं और पुनः मिटा देते हैं । ऐसा 106 बार करते हैं परन्तु 108वीं बार का लिखा हुआ मन्त्र नहीं मिटाते हैं । प्रत्येक बार मन्त्र को लिखते हुए मन्त्रोच्चारण भी करते
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हैं । अन्तिम मन्त्र का पंचोपचार से पूजन करते हैं । इस पूजन के पश्चात् मन्त्र का ग्यारह सौ बार जप करते हैं । तदोपरान्त पटरे पर तकिया रखकर उसके ऊपर सिर टिकाकर कर्ण पिशाचिनी का ध्यान करते-करते सो जाते हैं । इस क्रिया से तत्काल लाभ होता है फिर भी इसे 21 दिन तक करना चाहिए । यदि इस मेहनत से बचना हो तो किसी ग्रहण के पूर्ण भोगकाल में इस मन्त्र को निरन्तर जप लें, तदुपरान्त पाँच सौ बार जपने से भी लाभ मिलता है । मन्त्र यह है—
ॐ नमः कर्ण-पिशाचिनी मत्त करिणि प्रवेषे अतीतानागत वर्तमानानि सत्यं कथय मे स्वाहा ॥
कर्ण-पिशाचिनी नाम से तो प्राय: लोग परिचित हैं और इस देवी के अनेकों प्रयोग व मन्त्र प्रचलन में चल रहे हैं अतः यहाँ उन्हें कहकर विषये वस्तु को लम्बा करने का प्रयास नहीं करूँगा । यहाँ पर जो भी विषय सामग्री प्रस्तुत की है वह इसी विश्वास से की है कि सम्भवत: उपरोक्त प्रयोग आपके देखने में नहीं आये होंगे क्योंकि वह सब हमारे गुप्त व दुर्लभ प्रयोग
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हैं । कर्ण-पिशाचिनी के पश्चात् कर्ण-पिशाच का प्रयोग प्रस्तुत है ।
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सर्पाक्षि व अलाबू की जड़ रवि पुष्य संयोग पर ग्रहण कर लें। आगे