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अब मानसिक रहस्य समझना होता है कि स्वप्न किसी भी प्रकार का क्यों न हो उससे अचेतन मन की तृप्ति होती है। इसी कारण स्वप्नों को अभिलाषापूरक कहा जा सकता है। आज सिनेमा व वी.सी.आर. का बहतायत से प्रचलन है और आज के दर्शक स्वयं जानते होंगे कि उन्होंने स्वप्नों में अपने चहेते कलाकारों से साहचर्य किया या नहीं। मेरे पास अनेक लोग आते रहते हैं और मैंने पाया है कि जो पात्र अपनी असमर्थता को स्वीकार कर लेते हैं वह स्वप्नों के द्वारा उस सुख की पूर्ति कर लिया करते हैं । एक लड़की अमुक के साथ विवाह करना चाहती थी परन्तु उसका विवाह अन्यत्र हो गया तो उसे प्राय: डरावने स्वप्न आने लगे कि वह दल्हन बनकर बैठी है और कोई प्रेतात्मा उसे सता रही है। कुछ विषयों में तो यह साहचर्य भी हुआ है। मानसिक रूप से उन्नत पात्र ने स्वप्न में उसके साथ साहचर्य किया जिसे कि जाग्रत अवस्था में प्राप्त करना चाहता था। प्राय: नेता लोग जनसमूह के मध्य स्वयं को खड़ा देखते हैं। बच्चे स्वप में अधिक खिलवाड़ करते हैं। सुषुप्तावस्था में जब प्यास लगती है तब जलाशय, नल, जलादि के स्वप्न दिखते हैं। जब लघुशंका लगती है तब स्वप्न में पाखाना व शौचालय, मल-मूत्रादि दिखाई पड़ते हैं। जब भूख लगती है तब रोटी आदि के स्वप्न दिखते हैं।
___ लोग कहते हैं कि स्वप्नों के कारण नींद में बाधा पहुँचती है जबकि स्वप्नों के कारण नींद में बाधा नहीं पहुँचती, बल्कि सोने में सहायता प्राप्त होती है। यह परम सत्य है कि नींद स्वप्न का अभिभावक होती है। प्राय: जब सोने की इच्छा को लेकर व्यक्ति बिस्तर पर जाता है और सो जाता है तब भीतर अन्तर्मन में दबी हुई अपूर्ण, असन्तुष्ट अभिलाषाएं अपनी पूर्णतः, अपनी सन्तुष्टि के लिये चेतना में आने का प्रयास करती हैं। सुषुप्तावस्था में प्रतिबन्ध क्रिया शिथिल तो रहती है पर अचेतन मन क्रियाशील बना रहता है। इसी कारण अभिलाषाएं विभिन्न रूपों में विभिन्न प्रतीकों के सहारे