Book Title: Swapna Siddhant
Author(s): Yogiraj Yashpal
Publisher: Randhir Prakashan

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Page 25
________________ [24] थी। लगभग एक मास में ही उनकी उस स्त्री से मित्रता हो गई और दोनों एक दूसरे से प्रेमालाप करने लग गये। यह स्वप्न उसने भी देखा था, ऐसा उसने मुझे बताया था। सभी स्वप्नों में ऐसा नहीं होता और यह नियम नहीं कार्य करता है क्योंकि स्वप्न नौं प्रकार के कारणों से होते हैं । इसमें प्रथम प्रकार का कारण है—'सुना हुआ' अर्थात् किसी से सुना और वैसा ही स्वप्न देख लिया। दूसरे प्रकार का स्वप्न है—'देखा हुआ'। तीसरे प्रकार का स्वप्न है-'अनुभव किया हुआ'। चौथे प्रकार का स्वप्न है—'स्वाभाविक' । पाँचवें प्रकार का स्वप है—'विकार जन्य' अर्थात् शरीर में रोग होने के कारण स्वपों का निर्माण होना । छठे प्रकार का स्वप्न है—'विचार व मनन' अर्थात् किसी विषय पर लगातार या गूढ़ विचार या चिन्तन से स्वप्न का निर्माण होना । सातवें प्रकार का स्वप्न है—'भाग्य दोष' । आठवें प्रकार का स्वप्न है—'धर्म का प्रभाव' अर्थात् कोई व्यक्ति साधना करता है, पूजा-पाठ में लगा है तो इसकी शुभताओं के प्रताप से स्वप्नों का निर्माण होता है। नौवे प्रकार का स्वप्न–'प्रभु कृपा' से होता है । आठवें और नौवें स्वप के लिये सूक्ष्म-शरीर को अन्यत्र जाना नहीं पड़ता बल्कि दूसरे सूक्ष्म-शरीर उससे सम्पर्क साधते हैं, जबकि शेष सभी स्वप्नों के लिये सूक्ष्म सत्ता को अन्यत्र जाना पड़ता है। मानव जिन स्वप्नों का दर्शन करता है उनके स्वरूप के आधार पर उन्हें अनेक श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है जैसा कि मैंने अभी नौ प्रकार की श्रेणियाँ व्यक्त की हैं। अब मैं कुछ प्रमुख प्रकार के स्वप्नों का उल्लेख करता हूँ। स्वप समीक्षा करने पर यह बात तो स्पष्ट हो ही जाती है कि स्वप्नीली दुनियाँ में चिन्ता वाले स्वप्न अधिक होते हैं । इस प्रकार के स्वप्नों की कमी नहीं है जो कि भयभीत कर देते हैं, चिंतित कर देते हैं । जिस प्रकार

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