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मिलता है। इसी भांति और अंगोमें भी उपांगोंकी साक्षियां पाई जाती हैं, अर्थात् अमुक उपांगोंसे समझ लेना चाहिए। इससे यह स्वयंसिद्ध है कि देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण वर्तमान आगमोके संकलयिता थे, उन्होने लिपिवद्ध करते समय पाठोमे साम्य देखकर समयका अपव्यय न हो इसलिए ऐसा किया । आगमोंको पुस्तकारुड़ करके उन्होंने जैन समाज पर जो महान् उपकार किया है उसे कभी भी नहीं भुलाया जा सकता।
एक आगमका उली आगममें निर्देश-आगमोमे प्रस्तुत आगमका प्रस्तुत आगममे भी निर्देश पाया जाता है, जैसे समवायांगसूत्रमे १२ अंगोंके वर्णन मे समवायांगका भी वर्णन है, यही क्रम और आगमोंमे भी मिलता है, इसका कारण आगमोकी प्राचीन शैली है, यही प्राचीन पद्धति वेदोमे भी पाई जाती है। जैसे "सुपर्णोऽसि गरुत्मा त्रिवृत्ते शिरौ गायत्रं चक्षुर्वृहद्रथन्तरे पक्षी स्तोमं आत्मा छन्दा स्यङ्गानि यजू पि नाम ।”
जैनसाहित्यपर नई २ आपत्तियाँ-जिसकालमें बौद्धों और जैनोके साथ हिदुओका महान् संघर्ष था उस समय धर्मके नाम पर बड़े से बड़े अत्याचार हुए, उस अंधड़मे साहित्यको भी भारी धक्का लगा, फिर भी जैनसमाजका शुभ उदय समझे या आगमोंका माहात्म्य ! जिससे आगम वाल २ वचे और सुरक्षित रहे । परन्तु वड़ो पर आपत्तियों आया ही करती है । इसके अनन्तर चैत्यवासियोका युग आया, उन्होने चैत्यवादका जोर शोरसे आंदोलन किया और अपनी मान्यताको मजबूत करने के लिए नई २ बातें घड़नी शुरू की, जैसे कि अंगूठे जितनी प्रतिमा वनवा देनेसे स्वर्गकी प्राप्ति होती है, जो पशु मंदिरकी ईटे ढोते हैं वे भी देवलोक जाते हैं, आदि २। वे यहां तक ही नहीं रुके वल्के उन्होने आगमोमे भी अनेक वनावटी पाठ घुसेड़ दिए। जिस प्रकार रामायणमे क्षेपकोकी भरमार है उसी प्रकार आगमोमे भी । इसके बाद युगने करवट बदली और उसी कटाकटीके समय धर्मप्राण लोकाशाह जैसे क्रान्तिकारी पुरुप प्रगट हुए । उन्होने जनताको सन्मार्ग सुझाया और उसपर चलनेकी प्रेरणा दी। चैत्यवासियोने तो उनको अनेक काट दिए पर वे कहा टससे मस होनेवाले थे । “धस्मो मंगलमुकिट्ट' गाथा पढ़कर और चैत्यवासियोमे आचार विचार संबंधी शिथिलता देखकर उन्होने वह आवाज उठाई कि जिससे लोगोमे क्रांति और जागृति उत्पन्न हुई तथा लवजी धर्मशी धर्मदासजी जीवराजजी जैसे भव्यभावुकोने धर्मकी वास्तविकताको अपनाया और उसके स्वरूपका प्रचार आरंभ