________________
२२
वयसा, कायसा, जोगसा, वलसा, चक्खुसा। महाराष्ट्रीम अनुकमने उनके स्थान में सणेण, वएण, कारण, जोगेण, वलेण, चक्खुणा होते हैं ।
(५) 'कम्म' और 'धम्म' शब्दके तृतीयाके एकवचनमें 'कम्मुणा' और 'धम्मुणा' होता है, जिसका अनुकरण पाली भाषा भी करती है, जबकि महाराष्ट्री 'कम्मेण' और 'धम्मेण ' होता हैं ।
( ६ ) अर्धमागधीमें 'तत्' शब्दके पंचमी के बहुवचन में 'तेभो' भी देखा जाता है, जब कि महाराष्ट्री में इसका 'अदर्शनं लोपः' है ।
(७) 'युष्मत्' शब्दका षष्टीका एकत्रचन 'तव' और 'अन्मन्' का पीका बहुवचन ‘अस्माकम्' जिसका अनुकरण संस्कृतभाषा भी करती है, अर्धमागधीमं है महाराष्ट्र मे नही ।
आख्यात- विभक्ति - अर्धमागधीमे भूतकालके बहुवचन में 'सु' प्रत्ययका प्रयोग होता है, जैसे 'आभा सिसु' 'गच्छिसु' 'पुच्छिसु' आदि | महाराष्ट्रमि यह प्रयोग लुप्त है ।
धातुरूप — अर्धमागधीमे अकासी -अव्ववी- आइक्खर - आघं आहंसुकुम्बईघेच्छिइ-तिउट्टई-तिउट्टिज्जा - तिवायए-दुरूहइ-पडि संधयाति-पहारेत्था-भूया- भुवि - विगिंचए-समुच्छिहिति-सारयती- हुत्था होक्खती होत्या-प्रभृति प्रभूत प्रयोगों में धातुकी प्रकृति प्रत्यय अथवा दोनो जिस आकारमें पाए जाते हैं महाराष्ट्री में वे अलग २ प्रकारके देखे जाते है ।
धातुप्रत्यय - अर्धमागधीमें 'तत्वा' प्रत्यय के रूप अनेक तरहके होते है । (१) (अ) दु; जैसे - अवहट्टु, कट्टु, साह आदि ।
(आ) इत्ता, एत्ता, इत्ताणं और एत्ताणं; यथा - चइत्ता, पासित्ता, विउद्वित्ता, करेत्ता, पासित्ताणं, करेत्ताणं इत्यादि ।
(इ) इत्तु; जैसे - जाणित्तु, दुरूहित्तु, वधित्तु वगैरह ।
(ई) चा; यथा - किच्चा, चेच्चा, णच्चा, भोच्चा, सोचा प्रभृति । ( उ ) इया; जैसे- दुरूहिया, परिजाणिया आदि ।
इनके अतिरिक्त अणुवीति, निसम्म, विउक्कम्म, लड्डु, लडूण, समिच, संखाए, दिस्सा आदि प्रयोगो में 'त्वा' के रूप भिन्न २ प्रकारके पाए जाते हैं ।
(२) 'तुम' प्रत्ययके स्थान में 'इत्तए' या 'इत्तते' प्राय. देखा जाता है । जैसे - करित्तए, गच्छित्तए, विहरित्तए, संभुंजित्तए, उवसामित्त आदि ।
(३) ऋकारांत धातुके 'त' प्रत्ययके स्थान में 'ड' होता है, जैसे- कड, मड, अभिहड, वावड, संवुड, वियड, वित्थड प्रभृति ।