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सकते है, गुरु महाराज क्या उत्तर देते ? अतः उन्होंने गुडगांव न्यान त्यानी
जिनका जैन संघको प्रेरणा दी और श्रीसूत्रागमप्रकाशकमामितिकी स्थापना विस्तृत वर्णन "विजय डायरी', 'मोहन डायरी', 'सामायिकसन' हिन्दी गानि प्रकाश' और 'नेमराजुल बारहमासा' गुजरातीम पढ़ सकते है। विल्लारमय उसका उल्लेख यहां नहीं किया गया । सूत्रागमप्रकाशकसमितिका पहला ध्येय ३२ आगमोको आगमत्रयकी पद्धति से प्रकाशित करना है।
मूलसूत्रोंका प्रकाशन मूलसूत्रोंका प्रकाशन छुटक २ कई संस्थाओने किया है परन्तु पूरे मत्र किसीने अब तक मूल रूपमें प्रकाशित नहीं किए । आज तक उत्तराध्ययन टग कालिका सुखविपाक-नंदी बहुतसे और सूयगडाग-आचारांग-अनुयोगहार न्यून संख्या में मूलरूपमे छपे है। परन्तु अनुक्रमसे सबके सब आगम नहीं । सूत्रागमप्रकाशकसमितिकी योजना वत्तीसों सूत्रोको 'सुत्तागमे के रूपमे एकही पुन्तकम प्रकाशित करनेकी थी, परन्तु ग्रन्थकी देहयष्टी बहुत बढ़ जानेसे वैसा न हो सका। इसलिए ११ अंगोका प्रथम खंड बनाना पड़ा जिसमे लगभग १४०० पृष्टोमे ३५००० श्लोक है यह जानकर किसे प्रसन्नता न होगी। ___ आगमोंमें ११ अंगोंका महत्व-यो तो सारे ही आगम अत्यन्त उपयोगी और ज्ञानके अगाध समुद्र रूप है, परन्तु उनमें भी ११ अगोका अनोखा स्थान है । आचारांगमें साधु साध्वियोके आचार, भगवान् महावीरकी परिपहसहिष्णुता, एषणा, पाच महाव्रतोंकी २५ भावना आदिका वर्णन है । जो 'आचारः प्रथमो धर्मः' की उक्तिको चरितार्थ करता है । सूत्रकृतांगमें अन्यमतोंका दिग्दर्शन, उनका खंडन और स्वसमयका मंडन किया गया है । स्थानांगरसत्रमें १ से लेकर १० पर्यत संख्याकी वस्तुओका वर्णन है । विशेष नौवे ठाणेमे श्रेणिक राजाके आगामी भव पर प्रकाश डाला है । समवायांगलूत्र में १ से लगाकर कोडाकोडी सख्यातकके विषय वर्णित है। इसके अतिरिक्त द्वादशांगी स्वरूप भूत- - भविष्यत्-वर्तमान त्रिषष्ठिशलाका पुरुषोके माता पिताओके नाम एवं उनके नाम, पूर्वभव और आगामी भवके नामोका वर्णन है । ठाणाग और समवायागकी यही विशेषता है कि कोई भी विषय इनसे अछूता नही । भगवतीमें भगवान् गौतम द्वारा पूछे गए ३६००० प्रश्नोके उत्तर है । इसके अतर्गत रोहा अणगार, स्कंदक, तामली तापस, शिवराजर्षि, महाबल, ऋषभदत्त-देवानंदा, जमालि, गागेय अणगार, अतिमुक्तकुमारश्रमण, गोशालक, उदायन, मृगावती, जयंती
लोक है यह ११ अंगों का रूप है, पाचार, भगवान मह जो 'आन