Book Title: Suttagame 01
Author(s): Fulchand Maharaj
Publisher: Sutragam Prakashan Samiti
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विविहमहायंकसमुल्लसंतलल्लकणकचक्कअणवरयविसप्पिररोगसोगमयराइभीमभवण्गवाउ भव्वे धम्मदोणीतारणसमट्ठकुसलकण्णधाराण धीरधुरधवलुव्ब उव्वाहियदुव्वहपंचमहन्वयगुरुभाराण उदहिविव गहीराण मोहमल्लिकवीराण पावदावग्गिनीराण दुरियरयसमीराण जिणधम्मरहसुसारहीण धम्मकहीण तिगुत्तिवरगावसीकयदुट्ठमणस्साण अवगयदुग्गमसिद्धंतरहस्साण अपसत्यासवदारनिरोहगाण बहुभवजणसमाजवोहगाण जिइंदियाण धम्मपियाण पंचविहसज्झायविहि विहाणविहावगसावहाणाण अहिलजगज्जंतुजायवियरंतअभयदाणाण भवजलहिवुडंतजंतुसंतरणअणहवरजाणाण भवभयचारयवंधणविच्छेयनिमित्तसत्ताणाण समतिणमणिलेटकंचणाण छड्डियमयतण्हावंचणाण अण्णाणतिमिरावरियअन्तरणयणजणताविइण्णतदुग्धाडणारिहतविमलयाहेउपरमणाणंजणाण सखुव्व निरंजणाण कम्ममहीमहकुमइलउप्पाडणगइंदाण परतित्थियमियमइंदाण कासकुसुमालिनिम्मलजसभरपरिभरियभुवणयलाण दारिद्ददुमदवानलाण सोमुव्व सोम्मयागुणगरिहाण सव्वसाहुजणपगिट्ठाण सीहुव्व असंखोहाण आहिवाहिउवाहिकसायग्गिउल्हवणमेहसंदोहाण वज्जियलोहनियडिमयकोहाण पणट्ठसंपदायपक्खवायमोहाण अण्णाणंधयारावडियदावियमुत्तिमग्गाण गयसग्गाण कि बहुणा सव्वसाहुगुणोवमाजुत्ताण ससहरुव्व विवुहजणमणचओरामंदाणंददायगभव्वाहिययकेरववियासगनियसियतुजसजुण्हाधवलियदियंतरअण्णउत्थियचक्कविहडणपयडमहप्पपावकलंकवंकत्तणमुत्ताण अजपरमपुजाण वंदणिजाण ४ सिरि १०८ सिरिफकीरचंदमहारायाण धारणाववहाराणुसारं वदंति जइ मे पयासेण कस्स वि किचि वि लाहो होहिइ तो सपयत्तसाहलं मण्णिस्स, दिद्विमुद्दणक्खरजोजगदोसा कहिंपि कावि असुद्धी होउ सोहिजउ, पेसिजउ ससम्मई, इमाण सज्झायं कटु वुहा निरावाहं सुहं पाउणंतु त्ति ।
___गुरुपयंबुरुहदुरेहो-युप्फसिक्खू
सूचना यह प्रकाशन मेरे धर्मगुरु धर्माचार्य साधुकुलशिरोमणि १०८ श्रीफकीरचंद्रजीमहाराज (स्वर्गीय ) के धारणाव्यवहारानुसार है, यदि कोई दृष्टिमुद्रणादि दोप हो तो स्वाध्याय प्रेमी सज्जन सुधारकर पढ़े । यदि इस प्रयत्नसे मुमुक्षुओंको ज्ञानसाधनाका लाभ मिला तो परिश्रम सफल समझकर सन्तोप होगा। इन अंगसूत्रोंका अहर्निश स्वाध्याय करते हुए वे निराबाध सुख प्राप्त करे। मुनिगण अपनी सम्मति समितिको भेजें।
गुरुचरणचंचरीक पुप्फभिक्खू

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