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अर्थात् जी, बं; परंतु हवे जो ढुं सहसा फाटी न ज तो खरेखर पारथी पण कठीण ९, एम मानवं जोए. ॥ १३ ॥ अरे ! वली पण मने वधारे खेद तो एज थाय ठे के, जेडए क्यारे पण कगेर नाषण कऱ्या नथी, अथवा जेमनुं मन क्यारे पण विनयने उल्लंघन करी गयुं नथी,तेमज माता पिताना चरणना नमनने विषेप्रीतिवाला
नं कदापि कैगेरनाषिणो, "विनयातिक्रममानसा न वा ॥ पितमातृपदानतौ रताः, के सुंता देत नवेयुरीहशाः॥१४॥ तेनयाः सततं 'विकाशिनां, नवतामांस्यसरोरुहां श्रिये ॥
अवतारणमस्मि चक्षुषां, वरसौनाग्यकलावतां पुनः॥१५॥ श्रावा पुत्रो क्याथी होय ? अर्थात् म्हारा पुत्रो जेवा विनयवंत पुत्रो मलवा दुर्लज . Mailna ॥ हे तनयो ! हुँ पण निरंतर प्रफुल्लित एवां तमारा मुख रूप कमलोना अने
वली उत्तम सौजाग्यनी कलावंत एवा तमारां नेत्रोना उतारवाना स्थान रूप ढुं माटे मृत्यु पामुं हुं. ॥१५॥
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