Book Title: Sulsa Charitam
Author(s): Harishankar Kalidas Shastri
Publisher: Jain Vidya Shala

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Page 205
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ला अने निर्मल एवा गंगाना जलनुं पान करे बे, ते राजहंस कादववाला पर्वतनी नदीना जलने पान करवानी इछा करे खरो ? अर्थात् नज करे. ॥ ३६ ॥ जे मृगे | निरंतर उत्तम सुगंधवाला मलयाचलनी भूमिने विषे निवास करयो बे, ते मृग, वृ| दवाला एवा पण बीजा बनने विषे रागवान् थयो तो शुं रमे खरो ? अर्थात् न यः सदा प्रवरसौरजनाजि, वासमीप मलयाचलनूमौ ॥ harat " किमपरे स सैरंगो, टेकवत्यपि रैमेत कुरंगः ॥ ३७ ॥ एवमेव 'जिनवीरपदानं, वंदितं जैगति यैः सुरवंद्यम् ॥ तन्मनोऽपि कैामैन्यसुरेषु, "देषिरागिषु हैरादिषु यति ॥ ३८ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रमे ॥ ३७ ॥ एज प्रकारे विश्वमां जे मनुष्योए देवताउने पण वंदना करवा योग्य एवा श्री वीर जिनेश्वरना चरणकमलने वंदना करी बे, ते मनुष्योनुं मन पण द्वेषी ने रागी एवा हरादि बीजा देवताउने विषे केम गति करे ? अर्थात् जिनेश्वरना जक्तो वीजा द्वेषी ने रागी एवा देवताउने मानता नथी. ॥ ३० ॥ For Private and Personal Use Only

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