Book Title: Sulsa Charitam
Author(s): Harishankar Kalidas Shastri
Publisher: Jain Vidya Shala

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Page 217
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org | शांति युक्त वैराग्य रूप श्रमृतरसने पान कर. ॥ २४ ॥ हिंसा, मृषावाद, चोरी, मैथुन, धननी इवा, क्रोध, मान, माया, लोभ, क्लेश, रति रति, अयाख्यान, चाडी, द्वेष, प्रेम, परना अपवादनुं कहेतुं, मायामृषावाद श्रने मिथ्यादर्शनशल्य रूप पापनां ( शार्दूलविक्रीडितवृत्तम् ) 'हिंसाऽसूनृत चौर्यमैथुनधनाकांक्षाः क्रुध मानकं, मायां लोनकली च रत्यरतिर्मत्र्याख्यानपैशून्यके ॥ द्वेषं प्रेम पैरापवादवदनं मायामृषाभाषणं, " मिथ्यादर्शनशल्यपातकपदं चाष्टादशपि त्यज ॥ २५ ॥ (वैतालियवृत्तम् ) द ये कथितार्श्वतुर्विधा, निधास्थापनश्व्यभावतः ॥ शरणं चरणं तदर्दतां, ब्रेज मृत्योरंवनं वितन्वताम् ॥ २६ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | स्थानक एवां ए अढारने पण त्याग कर. ॥२५॥ श्रालोकमां नाम, स्थापना, द्रव्य अने जावथी जे चार प्रकारना जिनेश्वर प्रभु कहेला बे, मृत्युची रक्षण करनारा एवा ते For Private and Personal Use Only

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