Book Title: Sulsa Charitam
Author(s): Harishankar Kalidas Shastri
Publisher: Jain Vidya Shala
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सुलसा
॥१०॥
कघु होय, ॥ ३॥ धर्मादि सारा कार्यामां अंतराय कस्यो होय, मनुष्यना समूहने सर्गप्रमो. पापकर्ममां प्रेख्यो होय, वली प्रमादथी खोटी बातो करी होय, ते सर्व पोताना पुष्कत्यनी गुरुनी सादीए निंदा कर. ॥ ३३ ॥ ते जे अव्य जिनेश्वरोनां मंदिर, तेमनां प्रतिविंब, पुस्तक अने संघ ए चारने विषे पण वाव्युं ( वापखं) होय, शीघ्र प्रतिमादि तप
प्रेकृता सुकृतांतरायता, जनता पातककर्मणीरिता॥ "विकथा कथिता प्रमादतः, परिगर्दस्व तदात्मप्कृतम् ॥३३॥ "जिनमंदिरबिंबपुस्तकेप्वपि संघे धनमुप्तमंजसा॥ प्रतिमादितपः समर्थितं, यदलं धर्मविधौ संहायितम् ॥३४॥ "विदधे विधिदेशना त्वया, पतितः पावित आगमोऽपि यत् ॥
समयानुगमायदप्येलं, "निजपुण्यं वनुमोदयांतरा ॥ ३५॥ कलं होय, तेमज धर्मविधिमा घणी सहाय्य करी होय, ॥३४॥ वली ते जे समयने ॥१ ॥ अनुसरी विधिपूर्वक देशना श्रापी होय, तेमज आगमनो श्रन्यास कस्यो होय श्रथवा कराव्यो होय श्रने जे वीजुं पण पोतार्नु घणुं पुण्य होय, ते सर्व पोताना पुण्यनी
००००००००००००००००००००००००००००००००००००००
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228