Book Title: Sulsa Charitam
Author(s): Harishankar Kalidas Shastri
Publisher: Jain Vidya Shala

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Page 224
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुलसा लोकोने अत्यंत सुख जेमणे एवा, तेमज देव अने मनुष्योए जेमना चरण कमलनी सर्गप्रमो. स्तुति करी ले एवा, वली समग्र अतिशयोए करीने अज्ञानने नाश करनारा ते श्री निर्मम नामना जिनेश्वर केवलझानने पामी श्रने पृथ्वीने विषे तीर्थने स्थापना करी परम श्रानंद श्रापनारा मोक्षपद प्रत्ये पामशे.॥४२॥ ए प्रकारे में सम्यक्त्वसंजव ना (वसंततिलकावृत्तम् ) इचं मैया विरचितं सुलसाचरित्रं, सम्यक्त्वसंनव ईतीहै "चिराय'जीयात्॥ संशोधितं जयसमुज्कवींमुख्यैः, पूर्वप्रतौ "विलिखितं गणिनामरेण ॥४३॥ हामना महा काव्यने विषे रचे, जयसमुत विगेरे मुख्य पंमितोए शोधेलुं अने अमर |॥११॥ नामना गणिए पूर्व प्रतमां लखेलुं श्रा सुलसाचरित्र एज प्रकारे पृथ्वीने विषे घणा | काल सुधी जयवंतु वर्तो. ॥४३॥ 000000000000000000000000000००००००००० - - For Private and Personal Use Only

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