Book Title: Sulsa Charitam
Author(s): Harishankar Kalidas Shastri
Publisher: Jain Vidya Shala

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Page 216
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कार्यने विषे उद्यम कस्यो नहीं, तेनी आजे तुं निंदा कर.॥३॥ हे साध्धि ! उत्तम बुद्धि-सर्गणमो. सुखसा० वाली तें पूर्व प्राणातिपात विरति विगेरे जे व्रतोने विधि प्रमाणे श्रादस्यां होय, हि11 तकारी एवां ते व्रतोने 'अतिचार रहित श्राजथी हुँ पालीश' एम हमणां तुं फरी ना (वसंततिलकावृत्तम् ) प्राणातिपातविरतिप्रमुखव्रतानि, पूर्व यथाविधि सुधीस्वयकाँहतानि ॥ नावेन 'संप्रति पुनर्नण साध्वि तानि, त्वं पोलये "निरतिचारमैतो 'हितानि॥ २३ ॥ (वैतालियवृत्तम् ) संद संप्रति सर्वदेहिनामपराधं दमयस्व तानिजम् ॥ नज मैत्र्यमतिं त्यज हुँधं, शैमसंवेगसुधारसं "पिव ॥२४॥ ॥१०॥ वथी बोल. ॥३॥ हमणां सर्व प्राणीजना अपराधने सहन कस्य. तेमज ते प्राणी प्रत्ये पोताना अपराधने खमाव. वली मित्राश्नी बुद्धिने धारण कर, क्रोधने त्याग कर अने | )$$$$$$$$$$$$$$$܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀. For Private and Personal Use Only

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