Book Title: Sulsa Charitam
Author(s): Harishankar Kalidas Shastri
Publisher: Jain Vidya Shala

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Page 215
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Maiवली क्रोधादिके करीने जे जूतुं बोली होय, अथवा जे नहिं थापेली पारकी वस्तु पोतानी मानी ग्रहण करी होय, तेमज जे पशु, माणस अने देव संबंधी त्रण प्रकारर्नु Mall मेथुन सेव्यु होय, तेमज जे नव प्रकारना धन धान्यादिक परिग्रहने विषे ममता पण अनृतं जगदे क्रुधादिनिर्यददत्तं जगृहे स्वमस्वकम् ॥ पेशुमानवदेवसंनवं, "त्रिविधं "मैथुनमैद्यसेवितम् ॥ २० ॥ नैवधा धनधान्यकादिके, ममताकारि च यत्परिग्रहे॥ नियमै"निशाशनादिषु, यैदेतीचारितमैस्तु तथा॥२॥ युग्मम् । सति शक्तिनरेजेपि यत्तपो, न कृतं घादशधा जिनोदितम् ॥ "शिवंसाधकधर्मकर्मसूद्यमितं "नैव तदये "निंदय ॥२२॥ करी होय अने रात्रिभोजनादिकने विषे नियमे करीने जे अतिचार लाग्यो होय, ते ३ सर्वश्राजे मिथ्या था.॥२०॥२१॥ हे सुलसे ! तें शक्ति बतां पण जिनेश्वर प्रजुए | कहेढुं जे वार प्रकारचं तप ते श्राचघु नहीं. तेमज मोदना साधन रूप धर्मना का -०००००००००००००००००००००००००००००००००००००००० For Private and Personal Use Only

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