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लनी शंकाए करीने (अर्थात् में जे या पुण्य कस्युं बे, तेनुं फल मने मलशे के नही ?) एवा कारणोए करीने उत्तम एवा सम्यक्त्वने मलीन कर होय, तेमज जे हर्षश्री जिनेश्वरनुं पूजन न कस्युं होय, अने जे जिनेश्वरनी श्रज्ञा पण सारी रीते न पाली होय, ॥ १४ ॥ वली तें जे सामर्थ्य बतां पण कोइ बलने विषे नाश पामता गुरुना श्रने
गुरुदेवधनं चिले, संति सामर्थ्य उपेति नैश्वरम् ॥ "निखिलं रितं वृथास्तु "ते, तमाशातनयांनयपि च ॥ १५ ॥ समितीत गुप्तिनिः समं, चरणं सम्यगिदं न पालितम् ॥ कवह्निवाद्यगादय केंद्रियजंतवो हैताः ॥ १६ ॥
दल
| देवना द्रव्यनी उपेक्षा करी होय, अने ते गुरु ने देवनी कां या यशातना वडे करीने पण कांइ कयुं होय, तो तेल्हारुं सर्व पाप मिथ्या याउं ॥ १५ ॥ तें जे | पांच समिति ने त्रण गुप्ति सहित या सम्यक् प्रकारे चारित्र न पाल्युं होय; वली जे पृथ्वी, पाणी, अग्नि, वायु अने वनस्पतिकाय विगेरे एकेंद्रिय जीवो हष्या होय,
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