Book Title: Sulsa Charitam
Author(s): Harishankar Kalidas Shastri
Publisher: Jain Vidya Shala

View full book text
Previous | Next

Page 211
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1०००००००००००००००००००००००००००००००००००००००० (क्षमा) कर. वली पापना कारणोने त्याग कर, चार शरणो (अरिहंत, सिद्ध, साधु अने धर्म) नो श्राश्रय कर अने पुष्कृतनी निंदा कर. ॥ ए॥ पोतानासुकृत्योनी श्रनुमोदना कर, शुज नाव कर श्रने अशन (जोजन) ने त्यजी दे. वली हर्षथी पंचन सुकृतान्यनुमोदयात्मनः, शुननावं कुरु वाँशनं त्यज ॥ स्मर 'पंच नेमस्कृतीच्दा, "शिवशर्माशुं यथा पद्यसे ॥१०॥ (उपजातिवृत्तम्.) झानादिकाचारकपंचकेत्राँतिचार आगात्तव योऽपि सूक्ष्मः॥ आलोचय त्वं तमशेषमैद्य, "त्रिधा "विशुझ्या गुरुदेवसाति॥१९॥ मस्कार, स्मरण कर के, जे प्रकारे तुं तत्काल मोक्षसुख पामे. ॥१०॥ हे सुलसे ! श्रा ज्ञानादिक पांच श्राचारने विषे त्हारो सूक्ष्म एवो पण जे अतिचार श्राव्यो होय, ते सर्वने तुं श्राजे गुरु अने देवनी समक्ष त्रण प्रकारनी शुद्धिए करीने बालोव. For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228