Book Title: Sulsa Charitam
Author(s): Harishankar Kalidas Shastri
Publisher: Jain Vidya Shala

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Page 210
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुखसान एवी . वली गुणोए करीने मुख्य वे. कारण के, श्रा त्हारी निश्चल अने निर्मल सर्गमो. एवी धर्मबुद्धि परलोकने विषे हितकारी जे. ॥६॥ जन्मथी आरंजीने करेला सु॥१०॥ कृत्य, फल उत्तम मृत्यु एज देरासर उपर कलश चढाववा जेवू दे. कारण के, नव हस्तना प्रमाणवाला श्रेष्ठ नाला- मजबुत लोहाग्रज वखाणवा लायक . ॥७॥ सुकृतस्य केतस्य जन्मनः, शुनमृत्युः केलशाधिरोपणम् ॥ नवदस्तमितस्य शंस्यते, वरकुंतस्य 'दि कोटिसारता ॥७॥ जैननं यदि जातमं गिनां, मरणं तन्नियतं नविष्यति ॥ इति "निश्चयतः प्रमोदनाक, तैदिमें "पंमितमृत्युमाश्रय ॥७॥ अतिचारविशोधनं त्रैतोचरणं दामणमागसां कुरू॥ त्यज पातककारणानि वा, श्रेय चत्वारि च "निंद उष्कृतम् ॥ ए॥ जो प्राणीनो जन्म थयो . तो मरण पण निश्चे थवानुंज . श्रावा निश्चयथी प्र-IITRam मोदने नजनारी हे सुलसे! तुं तेज था पंमित मरणनो श्राश्रय कर. ॥७॥ दे M सुखसे! तुं अतिचारोनुं विशोधन कर, व्रत, उच्चरण कर श्रने अपराधोनी दमण al COCOCOCOるるるるるるるるるるるるるるるるるるるるるん ܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀ For Private and Personal Use Only

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