Book Title: Sulsa Charitam
Author(s): Harishankar Kalidas Shastri
Publisher: Jain Vidya Shala

View full book text
Previous | Next

Page 208
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra सुखसा० ॥१०३॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सर्ग मो. पठी तपे करीने दुर्बल थर गएली ते सुलसा अनुक्रमे वृद्धावस्था पामी. कारण के, मनुष्योनुं वय पर्वतनी नदीना जल समूहनी पेठे शीघ्र गति करनारुं बे. ॥ १ ॥ पोतानुं पालुं श्रायुष्य जाणीने करयुं ने संलेखन जेलीए एवी ए सुलसाए पोतानुं. श(तालियवृत्तम् ) अथ सा सुलसा तपःकृशा, क्रेमतः प्राप वयोऽतियौवनम् ॥ गिरिशैव लिन जलौघवर्त्तनुनाजां हि वेयोऽतिगत्वरम् ॥ १ ॥ 'निजमायुरेवेत्य पश्चिमं कृतसंलेखनयानया वपुः ॥ 'विदधे सविशेष निर्मल, कैर्यमौचित्यमपैति तादृशाम् ॥ २ ॥ अवसान दिने समीपगे, हंदि कृत्वा जिनवीरदैवतम् ॥ सुलसा नलसा वृषार्कने, गुरुमांनम्य जंगाद सादरम् ॥ ३ ॥ रीर अत्यंत निर्मल कयुं. कारण के, तेवा माणसोनुं योग्यकार्य केम नाश पामे ? - र्थात् नज पामे ॥ २ ॥ पोतानो अवसान दिवस पासे श्रावे ते श्री जिनेश्वर एवा For Private and Personal Use Only सर्ग०मो. 1120311

Loading...

Page Navigation
1 ... 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228