Book Title: Sulsa Charitam
Author(s): Harishankar Kalidas Shastri
Publisher: Jain Vidya Shala
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वीरप्रजु रूप दैवतने हृदयमा धारण करीने धर्म संपादन करवामां श्रावस रहित एवी । सुखसाए गुरुने प्रणाम करीने श्रादर सहित कयु.॥३॥ हे जगवन् ! तमे मोक्षमार्गना दर्शक होवाथी श्रावक जनोने दीपक रूप बो. माटे श्रा समयने योग्य एवी क्रिया करो अने मने संसार समुज्थी निस्तारो. ॥॥ परी गुरु ते सुलसाने मधुर, कोमल
नगवन् शिवमार्गदर्शनात्, त्वमसि श्राइजनस्य दीपकः॥ तर्ददःसमयोचितां क्रियां, कुरु "निस्तारय माँ नेवार्णवात् ॥४॥ मधुरैर्मेनिमनोहरैजिनसिक्षांतगतैर्वचोनरैः ॥ सुनटानिव नट्टराईणे, गुरुरुत्सादयति स्म तामिति ॥५॥ अयि सर्वविवेकवयपि, मृतकृत्याऽसि गुणाग्रणीरसि ॥
परलोकहिताऽस्ति "निश्चला, यदियं धर्ममतिस्तवामला॥६॥ मनोहर श्रने जिनेश्वर प्रजुना सिद्धांतने विषे रहेला वचनना समूहे करीने रण संग्राममां सेनाधिपति सुजटोने जेम उत्साह पमाडे, तेम उत्साह पमाडवा लाग्या.॥५॥ हे सुखसे ! तुं सर्व प्रकारना विवेकवाली तेमज संजागुं ने परलोक संबंधी कार्य जेणीए ।
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