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(क्षमा) कर. वली पापना कारणोने त्याग कर, चार शरणो (अरिहंत, सिद्ध, साधु अने धर्म) नो श्राश्रय कर अने पुष्कृतनी निंदा कर. ॥ ए॥ पोतानासुकृत्योनी श्रनुमोदना कर, शुज नाव कर श्रने अशन (जोजन) ने त्यजी दे. वली हर्षथी पंचन
सुकृतान्यनुमोदयात्मनः, शुननावं कुरु वाँशनं त्यज ॥ स्मर 'पंच नेमस्कृतीच्दा, "शिवशर्माशुं यथा पद्यसे ॥१०॥
(उपजातिवृत्तम्.) झानादिकाचारकपंचकेत्राँतिचार आगात्तव योऽपि सूक्ष्मः॥
आलोचय त्वं तमशेषमैद्य, "त्रिधा "विशुझ्या गुरुदेवसाति॥१९॥ मस्कार, स्मरण कर के, जे प्रकारे तुं तत्काल मोक्षसुख पामे. ॥१०॥ हे सुलसे ! श्रा ज्ञानादिक पांच श्राचारने विषे त्हारो सूक्ष्म एवो पण जे अतिचार श्राव्यो होय, ते सर्वने तुं श्राजे गुरु अने देवनी समक्ष त्रण प्रकारनी शुद्धिए करीने बालोव.
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