Book Title: Sulsa Charitam
Author(s): Harishankar Kalidas Shastri
Publisher: Jain Vidya Shala
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सुलसान
॥१०१॥
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ख नूमिने विषे केरडा उगेला प्रदेशमां शुं हर्ष पामे ? अर्थात् नज पामे. ॥ ३३ ॥ जे सर्गप्रमो.
मर मानस सरोवरमां बहु सुगंधवाला पद्मरूप महेलनी वली (तंतु)ने विषे पोतानी || मरजी प्रमाणे निवास करतो हतो, ते ब्रमर प्रफुलित एवा पण खाखराना पुष्पने | विषे विलास करवानी बुद्धि शुं करे खरो? अर्थात् नज करे. ॥ ३४ ॥ जे गजराज शी.
मानसे सरसि सौरननारपद्मसौधवलनीष यथेष्टम् ॥ योध्युवास विकचेऽपि पलासे, किं "विलासमतिमितिसोऽली ३४ नर्मदापयसि यो जलकेलिं, शीतले गजपतिर्विदधाति॥ सोपरे पैयसि तीरगतेऽपि, दृष्टिमात्रमैपि "किं प्रैतनोति ॥ ३५॥ शंखकुंदकलिकोपमकांति, 'निर्मलं "पिबति गांगजलं यः॥
पंकिलं गिरिनदीजलपानं, कर्तुमिवति स किं वरदंसः॥ ३६॥ तल एवा नर्मदा नदीना जलमां क्रीडा करे , ते गजराज, कांठे रहेला एवा पण ॥११॥ बीजा (नर्मदा नदी विनाना) जलने विषे पोतानी दृष्टिमात्रने पण शुं करे खरो ? अर्थात् नज करे. ॥ ३५ ॥ जे राजहंस शंख श्रने कुंदलतानी कली सरखी कांतिवा
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