Book Title: Sulsa Charitam
Author(s): Harishankar Kalidas Shastri
Publisher: Jain Vidya Shala

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Page 193
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्मबांधव ! म्हारा घरने विषे पधारो.” एम कहती एवी ते सुलसा अंबडना सन्मुख गइ. कारण के, अतिथिने विषे आदर करवो एज प्रथम उंची अंतरनी नम्रता जणावे बे ॥ ३ ॥ म्हारा धर्मबंधु एवा आपनुं जले आगमन घयुं ( थाप जले पधारया.) | आपने जिनयात्रा सुखकारी बे ? श्राजे तमे पोताना आगमनथी श्रा म्हारुं घर पवित्र स्वागतं न भवतो मम धर्मबांधवस्य सुखदा जिनेयात्रा ॥ मामकं गृहमिदं जेवताऽद्य, पवितं "निजसमागमनेन ॥ ४ ॥ साधु साधु दिवसोय वरीयानू, सुप्रभात मिंदमंद्यतनं मे ॥ यंत्र 'संप्रति नूव समानधार्मिकाधिगम ष "विशेषः ॥ ५ ॥ प्रासनं स्वयमयदेषा, संभ्रमेण 'विकचाननपद्मा ॥ प्रेमधर्मविनयोद्यतचित्ता, लाघवं ने गणयंति हि संतः ॥ ६ ॥ कस् बे ॥ ४ ॥ याजे म्हारो दिवस घणोज श्रेष्ठ बे, अने था श्राजनुं प्रजात पण मंगलकारी बे, के जे दिवसना प्रजातने विषे दमणां श्रा विशेष एवं साधर्मिकनुं श्रागमन थयुं ॥ ५ ॥ प्रफुल्लित थयुं वे मुखारविंद जेनुं एवी सुलसाए संग्रमयी For Private and Personal Use Only

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