Book Title: Sulsa Charitam
Author(s): Harishankar Kalidas Shastri
Publisher: Jain Vidya Shala
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मो.
सुखसा
सर्ग ७ मो. पली पांचमे दिवसे विद्याथी बनावेली ते सर्व क्रियाने तत्काल त्याग करी, निर्मल श्रावकपणाने स्वीकारी.धोएला बे वस्त्रोने धारण करी, हाथमा श्रेष्ठ पुष्पना पात्रने
(स्वागतावृत्तम् ) पंचमेऽथ दिवसे तदशेष, 'विद्यया विहितमाशु विसृज्य ॥ श्रावकत्वममलं परिधाय, धौतवस्त्रयुगलं परिधाय ॥२॥ हस्तसंस्थवरपुष्पकपात्रश्चारुवेषनर्देनु इतगात्रः॥ "देवपूजनविधौ सुलसायाः, मंदिरेडंगमदेयं गतमायः॥॥युग्मम् धर्मबांधव समेदि मे गूदे, नाषिकेति सुलसांनिययौ सा ॥
आदरः प्रणयमांतरीँच्चैझैपयत्यतिथिषु प्रथमं "हि ॥३॥ धारण करनारो, उत्तम वेषधारी, सरल शरीरवालो अने कपट रहित एवो ते अंबड, देवपूजननी विधिवाला सुलसाना मंदिरने विषे गयो. ॥ १॥२॥ ते वखते “ हे |
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५
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