Book Title: Sulsa Charitam
Author(s): Harishankar Kalidas Shastri
Publisher: Jain Vidya Shala
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| घरदेरासरने विषे तत्काल तैयारी करावी. पढी अंबडे विधिए करीने जिनेश्वरोनुं पूजनाने स्तवन कस्युं ॥ ए ॥ जिनेश्वरनुं पूजन करी रह्या पढी ( सुलसाए ) - | पेला श्रासनने फरीथी पण ग्रहण करीने हर्षथी पूर्ण ते हृदय जेनुं अने दीर्घकाल सुधी करी बे यात्रा (सेवा) जेणे एवा श्रंबडे ते सुलसाने कयुं ॥ १० ॥ दे विवेकजैनपूजनविधेरेनु दत्तं विष्टरं पुनरपि प्रतिगृह्य ॥
दर्षपूर्ण हृदयः लसां तीं प्रत्युवाच सुचिरं कृतयात्रः ॥ १० ॥ 'विवेकनि यानि, शाश्वतानि मैयकॉप्यपराणि ॥ जैनबिंबपटलानि तानि, 'संप्रति त्वमपि तानि नमेदें ॥ ११ ॥ समदेन सुलसा शिरसाशु, वंदते स्मं निखिलान्यपि तानि ॥ सुः खलज्य सुकृतं सुखमतं, कैस्य 'नो हृदि मुदं कुरुते "दि ॥ १२ ॥ वाली श्राविके! सांजल, में शाश्वत तथा अशाश्वत एवा पण जे जिनबिंबना समूहने नमस्कार करयो बे, तेमने हमणां तुं पण अहिं नमस्कार कर ॥ ११ ॥ सुलसाए सर्व एवा पण ते जिनेश्वरना प्रतिबिंबने हर्षथी मस्तके करीने तत्काल वंदना करी.
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