Book Title: Sulsa Charitam
Author(s): Harishankar Kalidas Shastri
Publisher: Jain Vidya Shala

View full book text
Previous | Next

Page 195
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १७ 00000 www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | घरदेरासरने विषे तत्काल तैयारी करावी. पढी अंबडे विधिए करीने जिनेश्वरोनुं पूजनाने स्तवन कस्युं ॥ ए ॥ जिनेश्वरनुं पूजन करी रह्या पढी ( सुलसाए ) - | पेला श्रासनने फरीथी पण ग्रहण करीने हर्षथी पूर्ण ते हृदय जेनुं अने दीर्घकाल सुधी करी बे यात्रा (सेवा) जेणे एवा श्रंबडे ते सुलसाने कयुं ॥ १० ॥ दे विवेकजैनपूजनविधेरेनु दत्तं विष्टरं पुनरपि प्रतिगृह्य ॥ दर्षपूर्ण हृदयः लसां तीं प्रत्युवाच सुचिरं कृतयात्रः ॥ १० ॥ 'विवेकनि यानि, शाश्वतानि मैयकॉप्यपराणि ॥ जैनबिंबपटलानि तानि, 'संप्रति त्वमपि तानि नमेदें ॥ ११ ॥ समदेन सुलसा शिरसाशु, वंदते स्मं निखिलान्यपि तानि ॥ सुः खलज्य सुकृतं सुखमतं, कैस्य 'नो हृदि मुदं कुरुते "दि ॥ १२ ॥ वाली श्राविके! सांजल, में शाश्वत तथा अशाश्वत एवा पण जे जिनबिंबना समूहने नमस्कार करयो बे, तेमने हमणां तुं पण अहिं नमस्कार कर ॥ ११ ॥ सुलसाए सर्व एवा पण ते जिनेश्वरना प्रतिबिंबने हर्षथी मस्तके करीने तत्काल वंदना करी. For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228