Book Title: Sulsa Charitam
Author(s): Harishankar Kalidas Shastri
Publisher: Jain Vidya Shala
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सुखसान
मोहरूप मल्लना बलने मईन करवामां वीर, पापरूप कादवने धोश नांखवा माटे निसर्गप्रमो. मिल जलरूप थने कर्मरूप रजने उडाडी नांखवाने एक पवनरूप एवा हे जिनेश्वर पति! हे वीर ! तमे जयवंता वर्तो. ॥ १७ ॥ देव, दानव श्रने नरेश्वरोने वंदन करवा योग्य, चलायमान कस्वां अचल एवां मेरुपर्वतनां शिखरो जेमणे, केवलज्ञान रूप
मोदमल्लबलमर्दनवीर, पोपपंकगमनामलनी॥ कैर्मरेणुदरणैकसमीर, वं "जिनेश्वरपते जय वीर ॥ १७ ॥ 'देवदानवनरेश्वरवंद्य, चौलिताचलसुराचलशृंग॥ केवलादिकलिताखिल विश्व, रूपनिर्जितजगऊय वीर ॥२॥ वैईमान जनपावनपाथ, पादपीठलुम्तिामरनाथ ॥
तावकीनपदपंकजसंग, मौलिनापरि करोमि सुरंगम् ॥२०॥ नेत्रोए करीने जोयुं हे सर्व विश्व जेमणे अने रूपे करीने जीत्यु जगत् जेमणे एवा । हे प्रनो! तमे जयवंता वर्तो. ॥रए॥ जनोने पवित्र करवामां जलरूप अने जेमना : चरणकमलने विषे शो थालोटी रह्या वे एवा हे वर्तमान जिनेश्वर ! श्रेष्ठ रंगवाला |
॥
॥
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228