Book Title: Sulsa Charitam
Author(s): Harishankar Kalidas Shastri
Publisher: Jain Vidya Shala

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Page 196
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra सुलसा० ॥ ए७ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कारण के, डुः खर्थी पामवा योग्य एवं सुकृत (पुण्य), जो सुखथी मले, तो ते कया पुरु- सर्ग मो. पना हृदयमां हर्ष न उत्पन्न करे ? अर्थात् सर्वने दर्ष उत्पन्न करे ॥ १२ ॥ अंबड फरीथी पण निंध एवी ते सुलसानी स्तुति वचन वडे प्रशंसा करवा लाग्यो के, हे जैन| मानिनी ! हे विवेकिनी ! तुं धन्य बे ने व्हारोज मनुष्यजव पण सफल वे ॥ १३ ॥ बडः पुनरेपि प्रशसंस, तामिँति स्तुतिवचोभिर्रेनिंद्याम् ॥ जैनमानिनि विवेकिनि धन्या, त्वं तवैवें सफलं नरजन्म ॥ १३ ॥ tear वितवैव विशिष्टा, लब्धतत्व निधिकाऽस्ति मतिस्ते ॥ सर्वसारगुणगुंफितगात्रि, वें संतीजन शिरोमणिरेवै ॥ १४ ॥ वीतरागजनशेखरदीरो, वीरतीर्थपतिरादरतोपि ॥ देवदानवनरेश्वरमध्ये, श्रीमुखेन कुरुते यडुदंतम् ॥ १५ ॥ सर्व प्रकारना श्रेष्ठ गुणोथी गूंथेलुं वे गात्र जेणीनुं एवी हे सुलसा! पृथ्वीमां ल्हारंज दाक्षिण्यपणुं श्रेष्ठ बे. वली व्हारी बुद्धि प्राप्त थयो बे तत्वनो समूह जेणीने एवी बे. जेथी तुं सती स्त्रीजंनी मध्ये शिरोमणि रूपज बे ॥ १४ ॥ राग रहित पुरुषो (सामान्य For Private and Personal Use Only ॥ ए१ ॥

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