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(सुखी होने का उपाय भाग - ५
संबंध के नाम से बताया गया है। पाँच समवायों के माध्यम से एवं यथार्थ कार्य-कारण व्यवस्था के द्वारा ऐसे निमित्त नैमित्तिक संबंधों के स्वरूप को उपरोक्त भाग के द्वारा समझा । विपरीत समझ के कारण उनके संबंध में उठने वाली अनेक शंकाओं का निराकरण भी उक्त पुस्तक के माध्यम से समझा । इसप्रकार उक्त भाग-१ के माध्यम से छह द्रव्यों से आत्मा की भिन्नता समझकर आपस में कर्ता-कर्म संबंध मानने वाली भूल के निराकरण करने की पद्धति को भी समझा। इसप्रकार छह द्रव्यों में खोई हुई अपनी आत्मा को उन अनन्त द्रव्यों से भिन्न समझकर, अपने स्वतंत्र अस्तित्व की श्रद्धा जाग्रत की।
निष्कर्ष यह है कि विश्व के छहों द्रव्य अपनी-अपनी पर्यायों को अपने में स्वतंत्र रूप से करते ही रहते हैं। किसीका कार्य कभी रुकता नहीं है तथा कोई अन्य द्रव्य, अन्य द्रव्य की पर्याय में कुछ कर सकता भी नहीं। फिर भी मेरी आत्मा का उपयोग, अपनी आत्मा को छोड़कर उनकी ओर चला जाता है, यह तो निरर्थक ही सिद्ध होता है, मात्र उससे मुझे आकुलता ही प्राप्त होती है ।
मैं तो उन सभी के परिणमनों पर्यायों से भिन्न रहते हुए, मात्र उनको जान ही सकता हूँ लेकिन उनमें कर कुछ भी नहीं सकता । इस प्रकार की श्रद्धा से मेरे उपयोग को अत्यन्त निर्भर होकर, पर की ओर जाने का उत्साह ही टूट जाता है और मेरी परिणति उनसे उपेक्षित होकर अपने आप में सिमटने की चेष्टा करने लगती है।
भाग २ का विषय
भाग-२ के माध्यम से मोक्षमार्ग में पाँच लब्धियों की अनिवार्यता, उनमें देशनालब्धि का यथार्थ स्वरूप एवं उसकी उपयोगिता आदि के साथ-साथ चारों अनुयोगों का अभ्यास करने की पद्धति आदि विषयों को समझा। सारे द्वादशांग के सारभूत अपने आत्मतत्त्व की यथार्थ पहिचान करने के लिए, सातों तत्त्वों का, द्रव्यकर्म, भावकर्म के संबंध सहित, हेय,
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