Book Title: Sramana 1995 10
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 5
________________ श्रमण गांधीजी के मित्र और मार्गदर्शक : श्रीमद्राजचन्द्र डॉ. सुरेन्द्र वर्मा जैन जीवन-चर्या के साधक, राजचन्द्र रावजीभाई मेहता का जन्म सन् १८६७ में काठियावाड़ के एक छोटे से गाँव ववरिया में हुआ था। उन्हें अपने जीवन के आरम्भिक दिनों में ही धर्म के प्रति लगाव हो गया था। उनके दादा कृष्ण-भक्त थे और पिता भी वैष्णव मत. को मानने वाले थे किन्तु उनकी माता जैन परिवार की थीं। राजचन्द्र स्वयं भी बचपन में वैष्णव धर्म की ओर ही आकर्षित हुए थे और अपने दादा की धार्मिक मान्यताओं ने उन्हें काफी प्रभावित किया था, लेकिन बाद में उनका झुकाव धीरे-धीरे जैन धर्म की ओर बढ़ता गया। यद्यपि राजचन्द्र ने औपचारिक शिक्षा किसी स्कूल आदि में नहीं पाई थी लेकिन उन्होंने कई धार्मिक ग्रन्थों का अध्ययन किया था। संस्कृत और मागधी साहित्य को समझने में उन्हें कभी कोई कठिनाई नहीं आई। जैन धर्म की कोई भी पुस्तक जो उनके हाथ लग जाती, वे उसका सूक्ष्म अध्ययन करते थे। उन्होंने वेदान्त के ग्रन्थ भी पढ़े थे और भागवत और गीता जैसी धर्म-पुस्तकों का अध्ययन भी किया था। इसके अतिरिक्त कुरान और जेन्दावेस्ता के अनुवादों के माध्यम से वे मुस्लिम और पारसी धर्मों से भी परिचित थे। ___राजचन्द्र की स्मृति बहुत तीक्ष्ण और अवधान बहुत विस्तृत था। वे शतावधानी कहलाते थे क्योंकि वे एक ही समय पर सौ बातों पर ध्यान दे सकते थे और उन्हें याद रख सकते थे। राजचन्द्र विवाहित थे और बम्बई के एक प्रसिद्ध जौहरी थे, किन्तु अपने परिवार और व्यापारिक जीवन से उन्हें कोई आसक्ति नहीं थी। उनका एक मात्र लक्ष्य ईश्वरानुभूति था। __ राजचन्द्र धार्मिक कविताएँ रचते थे और कई धर्म-ग्रन्थ भी उन्होंने लिखे। इनमें उनकी रचित पुस्तक मोक्षमाला सर्वाधिक प्रसिद्ध है। राजचन्द्र की धार्मिक साधना और आत्म-साक्षात्कार के लिए उनका भावावेश उस बिन्दु पर पहुँच गया था कि अन्त में वे एक प्रकार की रहस्यात्मक दीवानगी से ग्रस्त हो गए थे और ईश्वर को हर जगह देखने लगे थे"हमारा देश हरि है, हमारी जाति हरि है, समय हरि है, शरीर हरि है, रूप हरि है, नाम हरि है, दिशा हरि है; सभी कुछ हरि और मात्र हरि है।” राजचन्द्र का देहावसान केवल ३३ वर्ष की आयु में ही हो गया था। राजचन्द्र महात्मा गांधी के समकालीन थे। गांधी के जीवन और चिन्तन को आकार देने में राजचन्द्र का बड़ा योगदान था। वे गांधी जी के मित्र और मार्गदर्शक थे। गांधी जी अपनी आत्मकथा में जिन तीन आधुनिक चिन्तकों का, जिन्होंने उनके जीवन पर अधिकतम आध्यात्मिक प्रभाव डाला, उल्लेख करते हैं, उनमें सर्वप्रथम वे राजचन्द्र का ही नाम लेते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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