Book Title: Smruti Sandarbha
Author(s): Nagsharan Sinh
Publisher: Nag Prakashan Delhi

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Page 10
________________ १५० मनुस्मृति द्रव्यपरिमाणनिरूपण वर्णनम् : १४३ तौल (माप) बनाने की विधि १३२ ऋण लेने पर ब्याज की दर १३६ किसी वस्तु के रखने पर चा वृद्धि में वृद्धि का सन्तुलन राजधर्म दण्डविधानवर्णनम् : १५५ जो कन्या नहीं है उसे कन्या कहकर विवाह करने वाले को दण्ड २२५-२२६ पाणिग्रहण संस्कार कन्या का ही होता है स्त्री का नहीं २२७-२२८ वेतन वण्ड वर्णनम् : १५२-२२६ सीमा दण्ड वर्णनम् : १५५ ग्राम सीमा का निर्णय २६५ वाक्पारुष्य (अपशब्द गाली देने) का व्यवहार २६६ दण्डपारुष्य (मार-पीट) के अपराध २७८-३०० चौरवण्ड वर्णनम् : १५६ स्तेन चोरी ३०१-३४४ राजधर्म दण्ड विधान वर्णनम् : १६२ परस्त्री-गमन की परिभाषा (संग्रहण) परस्त्री गमन का दण्ड ३८६ कर लगाना और तुला, तराजू, गज, बांटों का निरीक्षण ३९८-४२० ६. शक्तिस्वरूपास्त्रीरक्षाधर्मवर्णनम् : १६६ मात जाति शक्तिरूपा है इसे दृष्टिगत रखना पुरुष का प्रधान धर्म और कर्तव्य है । किसी भी रूप में शक्ति का ह्रास अवाञ्छनीय है । स्त्री की रक्षा से धर्म और सन्तान की रक्षा होती है पुत्र प्रत्युक्तिं सभिः पूर्वजैश्च महर्षिभिः । विश्वजन्यमिमं पुण्यमपन्यासं निबोधत ॥ भः पुत्रं विजानन्ति श्रुति द्वधं तु भर्तरि । आहुचत्पावकं केचिदपरे क्षेत्रिणं विदुः ।। क्षेत्र भूता स्मृता नारी बीजभूतः स्मृतः पुमान् । क्षेत्रबीजसमागात्संभवः सर्वदेहिनाम् ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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