Book Title: Siddhachal Tirth ke 21 Kshamashraman Author(s): Vallabhvijay Publisher: Atmanand Jain Sabha View full book textPage 5
________________ "सिद्धाचल सिमरु सदा, सोरठ देश मझार । । मनुज जन्म शुभ पायके, वंदू वार हजार ॥" __ इच्छामि खमासमणो०॥४॥ पर्वतमें सुरगिरि बड़ा, जिन अभिषेक कराय । सिद्ध हुए स्नातक यहां, सुरगिरि नाम धराय ॥ १२ ॥ अथवा चउदस क्षेत्रमें इससम तीर्थ न एक । तिण सुरगिरि नामे नमुं, जिहां सुरवास अनेक ॥ १३॥ "सिद्धाचल सिमरूं सदा, सोरठ देश मझार । मनुज जन्म शुभ पायके, बंदू वार हजार ॥" इच्छामि खमासमणो० ॥ ५॥ अस्सी योजन पृथुल है, ऊंचपने छब्बीस । महिमामें म्होटा गिरि, महागिरि नाम नमीस ॥ १४ ॥ "सिद्धाचल सिमरु सदा, सोरठ देश मझार । मनुज जन्म शुभ पायके, वंदू वार हजार ॥" इच्छामि खमासमणो०॥६॥ (७) गणधर गुणवंता मुनि, विश्वमांहि वंदनिक । जैसा वैसा संयमी, विमलाचल पूजनिक ॥ १५ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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