Book Title: Siddhachal Tirth ke 21 Kshamashraman
Author(s): Vallabhvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 30
________________ ( २८ ) श्रीसिद्धाचलजी की स्तुति. विमलगिरि सहु तीरथ राजा, नाभिको नंदन जिनवर ताजा, भवजलधिको जहाजा । नेमि विना जिनवर तेवीस, समवसरे सहु विमल गिरीस, भविजन पूरे जगीस ॥ सिद्धक्षेत्र जिन आगम भासे, दूरभवी भव्य निरासे, गिरि दरसण नवि पासे । कवड यक्ष चक्केसरी देवी, तीरथ सानिध्य कर सुख लेवी, तम सफल करेवी ॥ १ ॥ ( २ ) पुंडरगिरि महिमा आगममां परसिद्ध, | विमलाचल भेटी लइये अविचल रिद्ध | पंचमी गति पहुंता मुनिर कोडाकोड, इस तीरथ व कर्म विपाक विछोड़ ॥ १ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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