Book Title: Siddhachal Tirth ke 21 Kshamashraman
Author(s): Vallabhvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha
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( २७ ) मृलदेवने सनमुख राजे, पुंडरीक गणधार । पांच कोडि मुं चैत्री पूनम, वरीषा शिववधु सार । तुमे० २॥ सहसकूट दक्षिण बिराजे, जिनवर सहस चोवीस । चौदसो बावन गणधरना, पगलां पूजो जगीस। तुमेतो.३॥ प्रभुनां पगला-रायणहेठे, पूजो परमानंद । अष्टापद चोवीस जिनेश्वर, संमेते बीस जिणद । तुमे० ४॥ मेरुपर्वत चैत्य घणेरा, चउमुख बिंब अनेक । बावन जिनालय देवल निरखी, हरख लहु अतिछेक । तुमे०५॥ सहसफणाने शामला पारस, समवसरण मंडाण । श्रीपावसीने खडतरवसी काइ, प्रेमावसी प्रमाण । तुमे०६।। संवत अढार ओगणपचासे, फागण अष्टमी दन । उज्वलपक्षे उज्वल हुओ, गिरि फरस्या मुज मन । तुमे०७॥ इत्यादिक जिनबिंब निहाली, सांभली सिद्धनी श्रेण । उत्तम गिरिवर केणीपरे विसरुं, पद्मविजय कहे जेण । तुमे०८।।
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